Friday 17 June 2016

रिक्शेवाला-कहानी



"अरे साहब !मत मारिये .... मत मारिये साहब .... मर जाऊंगा साहब ... आह!.. मत मारिये... हम बहुत गरीब आदमी है ...इसमें मेरी गलती नहीं थी ...आप ही तेज चला रहे थे  " केशव ने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा ।
पर सामने वाले का गुस्सा शांत नहीं हुआ उसने माँ बहन की गलियां देते हुए एक जोरदार थप्पड़ और जड़ दिए , थप्पड़ जोरदार था और केशव के मुंह से खून निकलने लगा ।
"कमीने! आँख बंद करके चलते हो और दुसरो की गलती देते हो ...सारा रोड अपने बाप का समझते हो ... मेरी नई कार में खरोंच मार दी नुकसान कौन तुम्हारा बाप भरेगा ...न जाने कौन तुम्हे दिल्ली में आने का टिकट दे देता है..हरामखोर !वंही क्यों नहीं मरते !आ जाते हैं मुंह उठा के दिल्ली में " सामने वाले ने केशव की पेट में लात मारते हुए कहा।

पेट पर लात पड़ते ही केशव दोहरा होके लेट गया , मारने वाले ने केशव को तड़पता हुआ वंही छोड़ गुस्से में गलियां देता हुआ कार स्टार्ट की और चल दिया ।भीड़ देखती रही किसी ने भी कार वाले को रोकने की कोशिश नहीं की ।

ये मार खाने वाला केशव था , दिल्ली में 50 रूपये में दिहाड़ी पर किराये का रिक्शा चलाने वाला केशव ।केशव उत्तर प्रदेश के एक छोटे और पिछड़े गाँव से था ,गाँव में घोर गरीबी थी । गरीबी इतनी की सुबह को अगर रोटी मिल गई तो शाम का ठिकाना न था । खेतो में मजदूरी करते पर ज्यादा कुछ नहीं मिलता , हद तो तब हो गई की जब केशव का बच्चा बीमार हुआ और दवाई खरीदने के पैसे तक न थे ।घर मे ऐसा कुछ न था की उसे बेंच के बच्चे का इलाज कराता ,खेतो में मजदूरी कर के सिर्फ एक वक्त की रोटी का ही इंतेजाम हो पाता था तो इलाज के लिये पैसे कँहा से आते । किसी रिस्तेदार ने उसकी मदद नहीं वह सबके आगे गिड़गिड़ाया परन्तु किसी ने सहायता नहीं की , करते भी कैसे शायद वे लोग खुद मजबूर थे ।

अतः केशव ने गाँव छोड़ के शहर आने का निश्चय किया ताकि पैसा कमा के अपनी दरिद्रता दूर कर सके बच्चे का इलाज करवा सके , ठीक से रोटी खा सके उसका परिवार ।वह काम की तलाश में दिल्ली की तरफ चल दिया ।टिकट के पैसे नहीं थे पर किसी तरह टीटी से बचता हुआ वह ट्रेन से दिल्ली पहुँच ही गया ।

दिल्ली में एक दूर के रिश्तेदार की जान पहचान से केशव को  रिक्शा मिल गया था ,अब वह दिन भर रिक्शा चलाता और रात को किसी फलाइओवर के नीचे रात काट देता ।किराये और खाने से जो थोडा बहुत बच जाता उसे घर भेज देता ।

आज सुबह सुबह जैसे ही केशव सवारी लेने के लिए रिक्शा लेके स्टेण्ड पर जा रहा था तभी  रिक्शा कार से हलका सा टच हो गया , गलती कार वाले की थी वही रिक्से को ओवरटेक कर रहा था और कार में खरोंच आ गई ।

मार खाने के बाद केशव थोड़ी देर वंही सड़क पर ही बैठा रहा , उसके बाद फिर रिक्शा चलाने चल दिया ।
केशव को दिल्ली में आये हुए कई वर्ष बीत गए थे इस बीच केशव ने मेहनत मजदूरी करने के आलावा गलत धंधे कर के भी काफी पैसा कमा लिया था ।अब केशव एक बहुत ही अमीर व्यक्ति था ,खुद का बिजनेस , शानदार घर और तीन कारे उसके पास थीं ,सभी कुछ बदल गया था  केशव की गिनती अमीरो में होने लगी थी ।

एक दिन केशव अपनी कार लेके ऑफिस जा रहा था की अचानक एक रिक्शेवाले के साथ उसकी टक्कर हो गई गाडी में हलकी खरोंच आ गई थी ।केशव गाडी से उतरा और रिक्शेवाले को मारने लगा ।

" अरे साहब !मत मारिये .... मत मारिये साहब .... मर जाऊंगा साहब ... आह!.. मत मारिये... हम बहुत गरीब आदमी है ...इसमें मेरी गलती नहीं थी ...आप ही तेज चला रहे थे  "रिक्शेवाले  ने केशव से हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

पर केशव का गुस्सा शांत नहीं हुआ वह रिक्शेवाले को मारते हुए कह रहा था " साले !न जाने कँहा कँहा से आ जाते है दिल्ली में ...वंही क्यों नहीं मरते '

-संजय( केशव )

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