Friday 12 August 2016

एक प्रथा यह भी थी

पूर्वी उत्तर प्रदेश में नाग पंचमी वाले दिन नाग पूजा के आलावा एक प्रथा थी जिसे स्थानीय भाषा में 'गुड़िया सेरावन' कहा जाता था ।

गोरखपुर, बस्ती, गोण्डा, बाराबंकी आदि जिलो में मुखयतः यह प्रथा दलितों में प्रचलित थी ।जब मैं लगभग दस -12 साल का था तब यह प्रथा खूब प्रचलित थी ।

सुबह लोग नाग पूजा करते थे और संध्या समय गुड़िया सेरावन, मुखयतः यह लड़कियो  द्वारा मनाया जाता था ।
लडकिया सुंदर सी कपडे की गुड़िया बनाती थी , तरह तरह के रंग बिरंगे और आकर्षक कपड़ो से गुड़िया तैयार की जाती थी ।

गुड़िया को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता था फिर नाग पंचमी वाली संध्या को  हर घर में तरह तरह के पकवान बनाये जाते थे जिसमे की मीठे  गुलगुले मुख्य होते थे ।उसके बाद  लडकिया बांस की हरी टहनी लेके और अपनी आपनी सजी हुई गुडियो के साथ गाते बजाते किसी तालाब की तरफ निकल लेती थीं।

वस्तुतः वैसा ही नजारा होता था जैसे किसी दुल्हन के विदा होने का ।

गाते बजाते लड़कियो का टोली चल देती थी तालाब या पोखर की तरफ ,गाने के बोल कुछ इस प्रकार होते थे -

"हरियर दुल्हनिया .... झुलेली हिंडोलवा"

तालाब के किनारे पहुँच के लड़कियां गुड़िया को तट के पानी में रख देती और साथ में लाया हुआ पकवान भी ।
उसके बाद हरे बांस की टहनी से गुड़िया को पीटने लगती।
कुछ देर पीटने के बाद उसे तालाब की गीली मिटटी में दबा देतीं और वापस आ जाती।
यह प्रथा कई सालो से चली आ रही थी ।


फिर कुछ सालो बाद इस प्रथा को न मानाने का फैसला लिया गया ।पता चला की जिस गुड़िया को बांस की डंडी से पीट पीट के तालाब में दफ़ना दिया जाता था वह दरसल कोई अछूत कन्या थी जो किसी द्विज से प्रेम विवाह कर लेती है ।द्विजो को यह बात पसंद नहीं आती और वे लड़की को उस समय घेर के बांस के डंडो से पीट पीट के मार देते हैं जब वह नदी पार कर रही होती है , उसे मार के नदी के तट पर वैसे ही दफना दिया जाता है जैसे लडकिया गुड़िया को ।


इसे धार्मिक प्रथा का रूप दे इस लिए चला दिया था ताकि  की दुबारा कोई अछूत कन्या इस तरह की जुर्रत न कर सके ।वैसे ऐसी घटनाये आज भी आपको सुनने को मिल जाती है की किसी दलित का किसी ऊँची जाति से विवाह करने पर उसे मार दिया गया या प्रताणित किया गया।

आम जनमानस में अंतर्जातीय विवाह आज भी दुष्कर है , ख़ास कर द्विज और अछूत कही जाने वाली जातियों में ।

15-20 साल पहले ही  यह 'गुड़िया सेरावन ' प्रथा पूरी तरह से बंद कर दी गई , कम से कम जिन जिलो को मैं जानता हूँ वंहा तो बंद है ।

यह भी आश्चर्य है की आप जितने भी प्रथाओं और पर्वो की खुदाई  करेंगे उनकी जड़ो में कोई न कोई अछूत या शुद्र  जरूर दबा मिलेगा ।


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