Wednesday 3 August 2016

झोला छाप -कहानी

गरीब परिवार के होने के कारण नंदू किसी तरह गाँव की पाठशाला में दसवीं पास करने के बाद शहर आ गया था  रोजगार तालाश में ।परन्तु कोई ढंग का काम समझ न आने के कारण उसने एक डॉक्टर के क्लीनिक पर नौकरी करना ही उचित समझा ।

डॉक्टर के पास 5-6 साल असिस्टेंट का काम करते करते उसे काफी प्रेक्टिस हो गई थी ।कभी कभी ऐसा भी होता था की डॉक्टर की अनुपस्थिति में वह जनरल मरीजो को दवाई दे देता था ।कभी कोई शिकायत न आई उसके द्वारा दी हुई दवाई से , कई मरीज तो उसे डॉक्टर ही समझने लगे थे ।

अब उसे इतना ज्ञान और अनुभव हो गया था की वह खुद का छोटा क्लीनिक चला सकता था , पर ऐसा करना शहर में ठीक न था ।उसके पास डिग्री न थी ।

उसने निश्चय किया की वह अपने गाँव चला जायेगा और वंही लोगो का इलाज करेगा,आखिर गाँव में भी तो कोई दूर दूर तक डॉक्टर नहीं है ।गाँव में गरीब आदमी इलाज के लिए  भटकता रहता है उसे समय पर इलाज नहीं मिलता ,कई बार तो मामूली बुखार की दवाई लेने भी कोसो दूर जाना पड़ता है गाँव के लोगो को ।

यही निश्चय कर उसने शहर छोड़ दिया और आ गया अपने गाँव ।

गांव आने के बाद उसने अपने कमरे में ही छोटा सा क्लीनिक का रूप दिया और एक साईकिल खरीद ली ।
कुछ दिनों में एक्का दुक्का मरीज आने लगे थे उसके पास पर इससे कँहा काम चलता उसका इसलिए वह अपनी साईकिल पर अपना झोला बांधता जिसमे चकित्सा  का सामान रखता और  निकल पड़ता गाँव गाँव ।

उसकी दवाईयाँ बड़ी सस्ती और असरकारक होती थीं , जो मरीज दूसरे डॉक्टर की 3-4 खुराक दवाई खा के भी ठीक न होता नन्दू उसे दो खुराक में ठीक कर देता ।

मुख्य रूप से नन्दू के पेसेंट बहुत ही गरीब लोग होते थे जो बड़े डॉक्टर के पास जाना तो दूर की बात थी दवाई तक के पैसे न दे पाते थे ।पर नन्दू बिना पैसे की परवाह किये सबका इलाज करता , जिसके पास पैसे न होते वह नन्दू को अनाज दे देता था ।नन्दू को जो मिल जाए या न भी मिले उसमे खुश रहता ।

यूँ समझिये की नन्दू को लोगो को इलाज करने का जनून था , घर पर तो गरीब लोगो की भीड़ रहती ही थी उसके आलावा कोई चाहे दिन में बुला ले उसे या रात में हमेशा उसका झोला उठा ही रहता ।

अब नन्दू गांव गांव में ' झोला बाबू' के नाम से प्रसिद्ध हो गया था ।गरीब लोगो का एक मात्र सहारा था नन्दू ।


केशव  जो की कभी नंदू के साथ ही दसवीं तक पढ़ा हुआ था  और दूसरे गाँव में रहता था ।दोनों कभी अच्छे मित्र थे ।

केशव की आर्थिक स्थिति नन्दू से बेहतर होने के वह आगे पढता रहा और अब स्नातक है ।सरकारी नौकरी भी लग गई थी अतः थोडा  घमण्डी भी हो गया था ।शादी हो गई थी तो दो बच्चे भी थे , बड़ी बेटी और उससे छोटा बेटा 3 साल का ।

केशव जब नन्दू को झोला टाँगे साईकिल पर घूमते हुए देखता तो उसका मजाक बनाता ।
" दसवीं पास भी आज कल डॉक्टर बन गए हैं .....क्या होगा इस देश का ?"
ऐसे व्यंगवाण केशव के मुंह से अक्सर नन्दू के लिए निकल जाते थे ।केशव एक भी मौका नहीं गंवाता था नन्दू का अपमान करने का , ख़ास कर उसे झोला छाप डॉक्टर होने का ।

एक तरह से चिढ सी थी केशव को नन्दू से ।

पर केशव जितना नन्दू से चिढ़ता नन्दू उतना ही केशव की बातो पर ध्यान नहीं देता था ।वह हँस के केशव की हार बात को टाल देता था , जैसे किसी चीज का बुरा मानना उसने सीखा ही न था ।

केशव की आर्थिक  स्थिति नंदू से बेहतर होने क वह नंदू को जरा सी भी कद्र नहीं करता था, सुरेश सोचता की नंदू आठवीं पास और वह कँहा स्नातक। हमेशा नन्दू को और उसके झोला छाप डॉक्टर होने का मजाक बनाता , कभी कभी तो मुंह पर ही बेइज्जती कर देता था पर नंदू सुरेश की बाते हंस के टाल देता ।


सर्दियो के दिन थे , केशव  का बेटा दिन भर अच्छा भला खेल रहा था पर जैसे ही रात हुई अचानक  उसे तेज बुखार चढ़ना शुरू हो गया। केशव ने घर में पड़ी हुई दवाई पिलाई पर उससे भी फर्क नहीं पड़ा।

 जैसे जैसे रात गहरा रही थी बच्चे का बुखार तेज होता जा रहा था। रात को 11 बजे के करीब बच्चे को इतना तेज बुखार चढ़ा की उसकी आवाज बंद हो गई और आँखे पलट गईं ,पसलियां तेज चलने लगीं। सुरेश ने हर उपाय कर के देख लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा, पूरा परिवार घबरा गया और फ़ौरन कस्बे के नामी डॉक्टर के पास जाने की तैयारी की गई।

उन दिनों गाँव में वाहन की सुविधा नहीं होती थी और न ही किसी के पास मोटरगाड़ी ही होती थी ।जो थोड़े सम्पन्न होते थे उनके घर पर साईकिल एक मात्र सहारा होती थी वाहन के तौर पर ।

केशव ने साईकिल निकाली , पर यह देख के कलेजा मुंह को आ गया की साईकिल पंचर खड़ी है ।विकट समस्या थी , इधर बच्चे की हालात पल पल गम्भीर होती जा रही थी ।
गांव में किसी और के पास साईकिल भी न थी की उसकी मांग लिया जाये ।

थक के यह निश्चित हुआ की पैदल ही कस्बे के डॉक्टर के पास जाया जायेगा ।बच्चे को कम्बल में लपेटा गया और 5 किलो मीटर दूर क़स्बे की तरफ पैदल ही चल दिए ।

साथ में उसके पिता और उसकी पत्नी भी थे, रास्ते में कड़ाके की ठण्ड, घने कोहरे और झाड़ियो तथा खड़ी फसलों से टपकती ओस की परवाह न करते हुए तीनो तेजी से बढ़े जा रहे थे।

 तक़रीबन एक घंटे बाद वे कस्बे में स्थित डॉक्टर के पास पहुँचे।

वंहा देखा तो क्लीनिक में ताला लगा हुआ था बोर्ड पर लिखा हुआ था ‘ डॉक्टर महेश MBBS ‘। डॉक्टर के घर में काफी देर आवाज लगाने के बाद डॉक्टर की पत्नी उठ के आई और दरवाजा आधा खोला-
" नमस्ते मैडम जी , डॉक्टर साहब को बुला दीजिये ... मेरा बच्चा बहुत बीमार है " केशव ने गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

“डॉक्टर साहब घर पर नहीं हैं, बाहर गए हैं ... सुबह दवाखाने में आना " इतना कह झट से दरवाजा बंद कर लिया ।
"मेरी बात सुनिए मैडम जी ... मेरी बात " केशव बंद दरवाजे के सामने ही गिड़गिड़ाने लगा ।पर दरवाजा न खुला केशव को बहुत निराशा हुई, वह जानता था कि डॉक्टर घर में ही सो रहा है पर आना नहीं चाहता है।



तीनो मन मार के वहाँ  से चल दिए, कस्बे में तक़रीबन 4-5 डॉक्टर थे सुरेश सब के पास गया पर कहीं ताला लगा हुआ मिलता तो कोई सुबह आने की बात कह के उसे भगा देता।

यह सब देख केशव की  पत्नी का बुरा हाल हो रहा  था। वह बार बच्चे का चेहरा देखती और  रो देती , बुरे ख्याल उसको व्याकुल और विचलित कर देते ।
अब केशव के पिता का भी धैर्य जबाब देने लगा था उन्होंने केशव से कहा -

" अरे दूसरे गांव में  नन्दू है न .... सुना है बहुत अच्छा इलाज करता है .... चल उसी के पास चलते हैं .... तेरा तो वह दोस्त भी है "
" पर पिता जी वह तो झोला छाप डाक्टर है ?वो क्या इलाज करेगा? " केशव ने सकुचाते हुए पूछा ।
" जा के देख लेने में क्या हर्ज है , इस समय तो वैसे भी कोई और डॉक्टर नहीं है " केशव के पिता ने कहा

केशव  का मन तो नहीं माना पर और कोई चारा न देख उसने मौन स्वीकृति दे दी ।


सर्द रात और गहरी होती जा रही थी और उसके साथ आशा और निराशा के हिंडोले में तीनो का मन भी झूल रहा था ।तीनो तेजी से चलते हुए नन्दू के घर की तरफ रवाना हुए ।इस बीच केशव को बार बार अपना नन्दू को अपमान करना याद आ रहा था , वह सोच रहा था की यदि नन्दू ने भी उसके किये का बदला लेने के लिए इलाज करने से मना कर दिया तो क्या होगा ।मन ही मन नन्दू के व्यवाहर की आशंका से भयभीत हुआ जा रहा था ।

नन्दू के घर पहुँच के केशव पीछे ही खड़ा रहा , उसके पिता ने द्वार खटखटाया ।रात के ढाई बज चुके थे अब ।केशव चिंतित था की पता नह यह भी दरवाजा खोलेगा की नहीं ।

दो बार सांकल बजाने पर भीतर से दरवाजा खुल गया ।
सामने नन्दू खड़ा था ।

नन्दू ने जब इतनी रात को केशव और उसके परिवार को देखा तो वह चौंक गया उसने आश्चर्य से पूछा -
" क्या है केशव ? सब ठीक तो है न?"
" भैया .... बच्चे की तबियत बहुत ख़राब है .." जबाब दिया केशव की पत्नी ने और रोने लगी ।
" आप चुप हो जाइए ... मैं देखता हूँ .... भीतर लाइए बच्चे को " नन्दू ने कहा और तेजी से अपने क्लीनिक नुमा कमरे में आ गया ।

बच्चे को चारपाई पर लिटाया गया , नन्दू ने स्टेथोस्कोप से बच्चा का अच्छी तरह मुआयना किया और बोला-
"वाकई बच्चे की हालत बहुत ख़राब है ... अच्छा हुआ आप समय पर ले आये अगर जरा सी देर हो जाती तो बड़ा मुश्किल हो जाता "

नंदू से तीव्रता से झोले में से इंजेक्शन निकाला और बच्चे को लगा दिया ,पानी से पूरा बदन पोछा ।

उसके बाद नन्दू ने अपनी पत्नी को अलाव जलाने के लिए कह दिया साथ ही काली चाय भी केशव और उसके परिवार के लिए ।

अलाव की गर्मी और चाय से सर्दी से ठिठुरते केशव और उसके परिवार को राहत मिली ।केशव चुप था , उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था ।

नन्दू सारी रात बच्चे की देखभाल करता रहा , कभी बुखार जांचता तो कभी अलग दवाई देता तो कभी पानी की पट्टी सर पर रखता ।उसे जैसे अपना होश ही न था , बस बच्चे की परवाह थी ।अक्सर ऐसा ही नन्दू हर मरीज के साथ करता था , नन्दू पूरी तरह से मरीज की तीमारदारी में लीन हो जाता ।

केशव अपनी आँखों से सब देख रहा था ,नन्दू के प्रति उसके मन में जो घृणा थी वह कब की निकल गई थी उसकी जगह श्रद्धा ने ले लिया था ।
केशव की आँखों से आंसू आ रहे थे पर वह उन्हें चुपचाप मिटा देता।


सुबह होने वाली थी ।

तभी बच्चे की कराह सुन सभी के कान चौकन्ने हो गए , वे भाग के कमरे में गए तो देखा की बच्चे ने आँखे खोल दी थीं। नंदू बच्चे के सिराहने खड़ा था , बहुत थका हुआ लग रहा था पर उसके मुंह पर विजयी मुस्कान थी ।

" केशव भाई .... अब बच्चा खतरे से बाहर है .... थोड़ी देर लगेगी और ठीक होने में " नन्दू ने मुस्कुराते हुए कहा ।

केशव के चेहरे पर ख़ुशी के आंसू आ गए , वह अचानक नन्दू के पैरो पर झुक गया ।
" मुझे माफ़ करो नन्दू भाई ... आज तुम न होते तो मेरा बच्चा न बचता " केशव की आँखों में आंसू थे जिसे उसने अब छुपाया न था ।

" अरे केशव भाई क्या कर रहे हो ??.... तुम मेरे दोस्त हो ..... ऐसा मत करो ... मैं तो हमेशा तुम्हे दोस्त समझाता रहा हूँ " इतना कह नन्दू ने केशव को गले लगा लिया ।
" और हाँ! अब बच्चे को किसी हस्पताल ले जाइये ताकि और बेहतर इलाज हो सके .... मेरे पास सिमित साधन है " नन्दू ने सलाह दी ।

केशव के आंसू अब भी नहीं रुक रहे थे , उसने क्या सोचा था और नन्दू क्या निकला ...आज कम पढ़ा लिखा  नन्दू केशव को मानवता का पाठ पढ़ा गया था जो किसी भी उच्च डिग्री से अमूल्य थी ।

बस यंही तक थी कहानी ।
फोटो साभार गूगल


3 comments:

  1. बहुत अच्छी कहानी। यह एक झोला छाप डॉक्टर की मानवीयता को व्यक्त करती है जो डिग्री धारी अटैची छाप डॉक्टरों में बिल्कुल नहीं पायी जाती।

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    1. आभार सिंघल साहब ।

      जी बिलकुल सही कहा आपने , कम फीस में इलाज कर के एक तरह से मानवता की सेवा ही करते हैं वे ।

      सरकार को चाहिए की ऐसे डॉक्टर को उचित प्रशिक्षण दे ताकि वे और बेहतर इलाज कर सके , निश्चय ही वे डॉक्टर्स की भारी कमी को पूरा करने में सहायक होंगे ।

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    2. आभार सिंघल साहब ।

      जी बिलकुल सही कहा आपने , कम फीस में इलाज कर के एक तरह से मानवता की सेवा ही करते हैं वे ।

      सरकार को चाहिए की ऐसे डॉक्टर को उचित प्रशिक्षण दे ताकि वे और बेहतर इलाज कर सके , निश्चय ही वे डॉक्टर्स की भारी कमी को पूरा करने में सहायक होंगे ।

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