Thursday 15 September 2016

नाटक मण्डली- कहानी



केशव ने बरसो से बंद पड़े गोदाम के दरवाज़े पर जड़े जंग लगे ताले को डुप्लीकेट चाभी से बड़ी मशक्क़त से खोला ।
कुण्डी खोल जैसे ही भीतर  दाख़िल होने के लिए दो पल्लो के दरवाजे पर अंदर की तरफ बल लगाया , एक पल्ला कब्जे समेत उखड के लटक गया ।कब्जे में लगी कीलें पूरी तरह से गल चुकी थीं और चौखट  दीमक लग जाने कारण जरा सा धक्का  सहन नहीं कर पाया था और कीलों सहित निकल गया ।

केशव ने लटके हुए दरवाजे को उठा के दीवार के सहारे से खड़ा किया ,हाथो में लगी धूल को झाड़ के गोदाम में दाखिल हुआ । अंदर गुप्प अँधेरा था , दरवाजे के दाहिने हाथ की दीवार पर लगे बोर्ड के सारे बटन दबा देने के बाद अंदर दो बल्ब पीली सी रौशनी लिए चमक उठे ।

गोदाम कोई 800 वर्ग फुट में रहा होगा,सामने की दीवार से लगे  चार तख़्ते बिछे हुए थे जिन पर चार दरियां फ़ैली हुई थी उन पर धूल इतनी जम गई थी की वह धूल का गलीचा लग रहा था ।तख़्तों के पीछे दीवार पर बड़ी सी कपडे की चादर  लटकी हुई थी जो दो तीन जगह से गल जाने के कारण फट चुकी थी , चादर पर जंगल का दृश्य बना हुआ था । तख्तो के थोड़े से आगे किन्तु सामने ही दो दरियाँ बिछी हुई थीं।
तख्तो और उसके पीछे लटकी चादर पर बने दृश्य  को देख के ऐसा लगता था की इसे किसी स्टेज की शक्ल दी गई थी ।छत पर , दिवार के कोनो में बड़े बड़े मकड़ी के जाले लग गए थे।

दाहिने हाथ पर एक बड़ा और उसके ऊपर एक छोटा संदूक रखे हुए थें।

दीवार में बनी हुई अलमारी में 4-5 लाउडस्पीकर रखे हुए थे, कुछ माइक और उनके तारो का एक बंडल बना हुआ पड़ा था ।अलमारी के नीचे वाले खाने में कई तरह की चखरियां रखी हुंई थी , इन चखरियो पर रंग बिरंगी पन्नियाँ चिपकी हुईं थी । जब रंग बिरंगी पिन्नी चढ़ी  चखरियो में बल्ब लगा घुमाया जाता तो ये स्टेज पर लाइट इफेक्ट्स का काम करतीं ।

केशव मंत्रमुग्ध सब देख रहा था ,वह आगे बढ़ा और मकड़ी के जालों को हाथ से साफ कर उस छोटे संदूक को उठा के एक कुर्सी पर रखता हुआ  उसे खोला ।सन्दूक सौंदर्य प्रसाधनो के सामनो से भरा पड़ा था , लिपस्टिक,काजल,बिंदी, पाउडर , विभिन्न प्रकार की मालाएं, विग आदि न जाने क्या क्या चीजे थी।

केशव विस्मित हो उन्हें  हाथ से स्पर्श कर रहा था   ,उसकी सांसे जैसे उसके धौकनी की तरह चल  रही थीं ।सर भारी होने लगा था उसका , जैसे भूली हुई  स्मृतियाँ ज्वालामुखी बन के विस्फोट करने के लिए व्याकुल हों।

फिर हुआ भी ऐसा, वह अतीत में कंही खो गया ।उसके बचपन की स्मृतियाँ सजीव हो उसके सामने ऐसी आ गईं।

वह देख रहा था की -

गोदाम में चहल पहल थी  , सामने जो चार तख़्ते जिन पर नई चादर बिछी थी वह नाटक के  रियल्सल का अस्थाई स्टेज थी ।पीछे जंगल वाली सीनरी उसके पिता जी लाये थे ताकि रियल्सल करते समय वास्तविक स्टेज का आभास हो।
उस सीनरी में बने जंगल का चित्र जिसमे पेड़ पौधे और  जानवर हैं उनको निहारना केशव को कितना अच्छा लगता  , उसे देख केशव को लगता जैसे वह जंगल में पहुँच गया हो ।

केशव के पिता जी की एक प्रसिद्ध नाटक मण्डली थी जिसका नाम "उत्सव नाटक मण्डली' थी ।उत्सव नाटक मण्डली का नाम दूर दूर तक प्रसिद्ध थी , उसके पिता जी स्वयं संचालन करते नाटक मण्डली का ।
शादी -ब्याह में तो लोग चार महीने पहले ही उनकी उनकी नाटक मंडली को बुक कर लेते । बारातियो की ख़ास मांग होती थी 'उत्सव नाटक मण्डली ' की , जिस बारत में उत्सव  नाटक मण्डली जाती तो उसे देखने के लिए लोग दूर दूर से आते ।कभी कभी तो आगे बैठने के लिए मार पीट तक हो जाती थी इसलिए सुरक्षा की जिम्मेदारी नाटक बुक करने वाले की होती ।

राजा हरीश चंद्र, लैला मजनू, एकलव्य - द्रोणाचार्य सीता वनवास, सुलताना डाकू  जैसे दर्जनों नाटक थे जिनकी धूम थी ,बिरहा गाने में तो कोई सानी नहीं था इस  मण्डली का  । इसके अतरिक्त रामलीलाओं में भी बुलाया जाता ।जब स्टेज पर केशव के पिता जी संवाद  बोलते तो उनकी अदाकारी पर लोग नोटों की बौछार कर देते ।असर यह था की बच्चे उनकी नकल करते अपने खेलो में ।

 मण्डली में तकरीबन 20 लोग और काम करते थे जिनमें आठ तो नाटक में संगीत देने वाले ही थे ।
नागड़ा, ढोलक , ताशे, डुग्गी ,मंजीरे , हारमोनियम , मटका, बैंजो जैसे जोशीले और मधुर  वाद्य यंत्र बजते तो दर्शको में जोश दुगना हो जाता ।कोसो दूर से ही पता चल जाता था की 'उत्सव मण्डली' आई  है।

जगराम, महिला  का किरदार निभाने वाला! जब महिला का मेकअप कर स्टेज पर आता तो कोई पहचान ही नहीं पाता की यह दो बच्चों का बाप है ।कमर को ऐसे लचक देता की महिला भी न कर पाये , दर्शक पंक्ति में बैठी महिलायें जल भुन जाती जगराम के नृत्य पर ।

हैदरअली , जोकर का किरदार निभाने वाला! छोटे से कद के हैदरअली को देखते ही कितना भी व्यक्ति तनाव में होता उसे हंसी आये बिना नहीं रहती ।बीसीयों तरह का चेहरे का एक्सप्रेशन बना लेता , जब नाड़े वाले कच्छा पहन और ऊपर से फटा हुआ कोट और हैट पहन के आता तो बच्चे बूढ़े सब गिर गिर पड़ते हँसते हुए ।

नत्थूलाल , नागड़ा बजाने वाला ! नाटक में जब जोशीला संवाद आता या युद्ध दृश्य आता तो  नागडा ऐसा बजाता की कलाकारों से अधिक जोश दर्शको में आ जाता ।

केशव को एक एक कर के सभी नाटक के  कलाकरों और वाद्य यंत्रो को बजाने वालो के नाम और उनके चेहरे बिलकुल स्पष्ट नजर आ रहे थे ।जब काम नहीं होता था तो वे लोग उसके पिता जी के साथ इसी गोदाम में अभ्यास करते । कितना रंगीन और गुलज़ार हुआ करता था यह गोदाम उन दिनों , आस पास के लोग भी आ जाते थी कलाकारों के अभ्यास को देखने ।जिन्हें गोदाम में अभ्यास देखने के लिए प्रवेश मिल जाता वे अपने को धन्य समझते।

 केशव  अक्सर इस गोदाम में नाटको का अभ्यास देखता,सभी कलाकार बहुत प्यार करते थे उससे बिलकुल अपने बच्चे की तरह।कभी कभी वह भी  बाल कलाकार के रूप में कोई छोटा मोटा पात्र निभा लेता।किन्तु उसके पिता जी चाहते थे की पहले वह आपनी पढाई ख़त्म कर ले ।

केशव का दाखिला शहर के बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया गया,अब साल में केवल कुछ दिन के लिए ही वह अपने कस्बे में पिता जी से मिलने आता ।
जितनी बार भी मिलता उसके पिता पहले से अधिक हताश और कमजोर दिखाई देते , नाटक मण्डली में रौनक हर साल कम सी होती जा रही थी ।कई बार पिता जी इस बारे में पूछता तो वह हँस के टाल देते या यह कह देते की तबियत ख़राब होने के कारण नाटक मण्डली पर ध्यान नहीं दे पा रहे ।

खैर, दिन फिर साल बीतते गएँ केशव धीरे धीरे नाटक मण्डली के बारे में भूल गया ।उसने  ने पढ़ाई खत्म की और एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर ली ।नौकरी का अनुबंध ऐसा था की 10साल के लिए विदेश में रहना था ,यदि उसने बीच में अनुबंध तोडा तो उसका प्रोविडेंट फंड , बोनस आदि जितने भी लाभ हैं कँपनी की तरफ से वह नहीं मिलेगा बल्कि हर्जाना और भरना पड़ेगा।

इस बीच केशव के पिता जी की तबियत और खराब होती गई , नाटक कंपनी को बंद हुए कई साल बीत गए थे ।
केशव कई बार बीच में मिलने भी आया और बड़े हास्पिटल में इलाज भी करवाया किन्तु कोई फायदा न हुआ ।

अंत में तीन दिन पहले केशव को खबर मिली की उसके पिता जी अब नहीं रहें।

उनका क्रियाकर्म करने के बाद उसने सोचा की अब कौन रहेगा यंहा? क्यों की वह तो विदेश में ही सैटल होने का मन बना चुका था इसलिए  उसने मकान और गोदाम बेचने का मन बनाया ।आज उसने गोदाम को इसलिए खोला की उसकी थोड़ी मरम्मत करवा दे ताकि बेचने में अच्छी कीमत मिल सके '।

तभी एक तेज आवाज ने उसकी स्मृतियों के जाल को तोड़ा तो चौंक के जैसे जाग उठा हो ।
देखा तो एक बल्ब फट गया था , शायद इतने सालो बंद रहने के कारण हुआ था ।

केशव ने अब बड़ा बक्सा खोला तो उसमे कलाकारों के कपड़े और वाद्य यंत्र थे,हरमोनियम, मंजीरा ,ढ़ोलक,मुकुट ,तलवारे आदि भिन्न भिन्न प्रकार की चीजे भरी हुईं थी ।
केशव उन्हें एक एक कर उलट पलट कर देख रहा था ।
उसके लिए ये इन चीजो के प्रति उत्सुकता तो थी क्यों की ये सब चीज उसके बचपन से जुडी थी।किन्तु यह भी सही था की अब ये सब चीजे उसके लिए मात्र कबाड़ भर थी अतः वह खड़ा हुआ और  और कबाड़ी को फोन मिलाने लगा की तभी अचानक उसकी दृष्टि किसी चीज पर पड़ी , उसके नेत्र उत्सुकतावश सिकुड़ते चले गएँ....

आगे की केशव के साथ क्या घटित होता है यह जानने के लिए कहानी का अगला रोमांचाकारी भाग पढ़ना न भूलें....






4 comments:

  1. नाटक कभी सबसे प्रचलित माध्यम हुआ करता था मनोरंजन जागरूकता और ज्ञान विस्तार के लिए। आज गिने चुने शहरों में इसका अस्तित्व बचा है हालत बिलकुल वैसी ही है जैसे गोदाम के दरवाज़े की इस कहानी में वर्णन है।
    अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।

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