Thursday 8 September 2016

आसमान का रंग काला क्यों - लघु कथा

बहुत समय पहले की बात है , एक गाँव में एक विद्वान् पण्डित जी रहते थे ।उनकी विद्वता के चर्चे दूर दूर प्रचलित थे , सभी धर्मिक ग्रन्थ उन्हें मौखिक रूप से याद थे ।

एक दिन गाँव के बीचो बीच पुराने बरगद की घनी छांव में लौकिक और अलौकिक विषयो पर प्रवचन दे रहे थे , भारी  भीड़ जमा थी ।पास ही चढावे के रुपयो से भरी थाली रखी हुई थी , रूपये थाली से बाहर झांकने लग गए थे इसलिए दूसरी तरफ पड़े दक्षिणा में मिले फलो के ढेर से एक सेब उठा के पंडित जी ने रुपयो के ऊपर रख दिया था ताकि रूपये  हवा से उड़े न ।
श्रोता पंडित जी प्रवचन शैली की विद्वता से मंत्रमुग्ध थे , तभी दूध मिश्री ग्रहण करने लिए कुछ क्षण के लिए पंडित जी ने अपनी वाणी को विश्राम दिया ।

तभी गांव का हरवाहा घुरहु उठा और बोला " महाराज एक ठो बात पूछक चाहत हइं"

पंडित जी को घुरहु का यूँ उठ के प्रश्न करना तनिक अरुचिकर लगा , किन्तु भरी सभा थी अतः मना भी न कर पाये .

" बोल रे घुरहु क्या प्रश्न है तेरा ? "
" महाराज ! ई आसमान का रंग काला काहे है ?" घुरहु ने पूछ ही लिया ।

पंडित जी को सपने में भी आशा न थी की अनपढ़ गंवार घुरहु ऐसा प्रश्न भी पूछ लेगा ।
आसमान का रंग काला कहे है ?ऐसा प्रश्न तो आज तक किसी पढ़े लिखे ने भी न पूछा था पंडित जी से , इस अनपढ़ हरवाहे के दिमाग में कैसे आया यह प्रश्न? । बड़ी भारी दुविधा में घेर दिया था पंडित जी को अपनपढ़ गांवर  ने आज ।
क्या करे अगर उत्तर न दें तो विकट किरकिरी हो जायेगी सभा में ,पर दें क्या ?  पंडित जी मन ही मन बहुत क्रोधित हुए घुरहु पर ... ससुरा ऐसा उल्टा प्रश्न पूछ लिया ।अकेले में पूछता तो दो झापड़ मार के भगा देते ससुरे को  किन्तु यंहा तो भरी सभा है ।


 पंडित जी में एक नज़र रूपये की भरी थाली पर डाली तो ऐसा लगा की पब्लिक थाली से अपने पैसे वापस ले जा रही है ।

उन्होंने तुरंत घबरा के दृष्टि घुरहु पर डाली जो अब भी हाथ जोड़े खड़ा मुस्कुरा रहा था , ऐसा लग रहा था की वह समझ गया था की पंडित जी के पास उसके प्रश्न का जबाब नहीं है .... विजयी मुस्कान थी उसके चेहरे पर ।

पंडित जी में गला साफ़ करते हुए घुरहु के प्रश्न का जबाब दिया " सुन रे मुर्ख! आसमान का रंग इसलिए काला है क्यों की कृष्ण जी का रंग काला था .... जब कालिया नाग पर चढ़ के भगवान् नाचने लगे थे तो उनका मुख आसमान तक पहुँच गया था , उसी वक्त भगवान् के मुखमंडल के रूप को देख के आसमान ने भी अपना रंग काला कर लिया था "

घुरहु को आशा न थी की पंडित जी ऐसा जबाब देंगे , उसके चेहरे का विजयी भाव एक दम से पराजित भाव में बदल गया , अब क्या कहे वह !कृष्ण के आगे तो वह भी हार गया ।

घुरहु को मौन देख भीड़ ने श्रद्धा से जयकारा लगाया -
" पंडित महाराज की ... जय "
" कृष्ण भगवान् की .... जय"

जयकारा लगाने वालो में घुरहु भी शामिल हो गया था , पंडित जी की विद्वता से पूरा पंडाल आनन्दित था ।

पंडित जी ने रुपयो की थाली की तरफ मुस्कुरा के देखा और चैन की सांस भरी ।




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