Sunday 23 October 2016

जानिए कौन थे वैदिक किन्तु प्रबल नास्तिक ?



यदि हम भारत में नास्तिकता  की बात करें तो अमूमन  इस परम्परा में गैर ब्राहमणों का अधिकार रहा है  ,किन्तु ऐसा भी नहीं रहा की ब्राहमण ने ईश्वर के अस्तित्व को नकारा न हो| ईश्वर परस्त होने के बाद भी कई तार्किक ब्राह्मण ऐसे हुए जिन्होंने ईश्वर के अस्तित्व का जम कर खंडन किया |

ऐसे ही एक विचारक  ब्राह्मण हुए कुल्लुक भट्ट ,यह भी दिलचस्प रहा की कुल्लुक भट्ट ही वे विचारक थे जिन्होंने सातवी सताब्दी में वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित का अथक प्रयास किया |इन्ही का ध्वज बाद में आदि शंकराचार्य ने उठाया और वैदिक संस्कृति को पुर्नप्रतिष्ठित किया |

कुल्लुक भट्ट पहले बौद्ध थे किन्तु बाद में उन्होंने वैदिक धर्म अपनाया और वेदों के प्रति निष्ठा व्यक्त कर उसको प्रचारित करने का संकल्प लिया |भारत से बौद्ध धर्म को नष्ट करने में इनका बड़ा किरदार रहा था ,वे आपने साथ सुन्धावा की सेना ले के चलते थे और जब बौद्धों से तर्क करते हुए हार जाते तो  सेना का प्रयोग करते |

किन्तु, यदि हम उनकी मूल विचारो की बात करें तो वे ईश्वरवाद का खंडन करते हैं ,कुमारिल भट्ट अपनी पुस्तक ‘श्लोक वार्तिक ‘ में ईश्वर के अस्तित्व का लम्बा तर्किक खंडन करते हैं |अब यह आप उनके मस्तिष्क पर बौद्ध धर्म से मिले अनिसश्वरवाद के   ज्ञान का असर कह लीजिये अथवा ईश्वर नाम की कपोल कल्पना का सच जान के उन्होंने इसका खंडन किया |

श्लोक वार्तिका कुमारिल भट्ट का लम्बा और तार्किक खंडन है ईश्वर के विरोध को लेके |

१-      ईश्वरवादी कहते है की ईश्वर अमूर्त है उसका कोई शरीरी नहीं  तथा ईश्वर ने दुनिया बनाई है ,इस पर कुमारिल भट्ट तर्क था की जब ईश्वर का कोई शरीर ही नहीं तो वह दुनिया कैसे बना सकता है ?बिना शरीर के किसी चीज को बनाना कैसे संभव है ?

२-     कुमारिल भट्ट अगला तर्क देते हैं की ईश्वर ने दुनिया किस उद्देश्य से बनाई ?आखरी उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई जिस पर उसका खुद का नियंत्रण नहीं ?जब पहले से कोई भौतिक तत्व उपस्थित नहीं था तो ईश्वर को भौतिक तत्व कंहा से मिले जिससे उसने दुनिया बनाई ?

३-     इस तर्क का खंडन करने के लिए ईश्वरवादी यह कहते हैं की जैसे मकड़ी बिना किसी बाहरी तत्व के जाला बन लेती है उसी प्रकार ईश्वर ने  भी बिना किसी बाहरी तत्व को लिए हुए दुनिया रची | इस पर भट्ट तर्क देते हैं की मकड़ी तो कीड़े मकौड़े खाके और उन्हें पचा के जाले बनाने का पदार्थ तैयार करती है क्या ईश्वर भी भौतिक वस्तुए खा के दुनिया बनाई ? दुनिया अस्तित्वहीन पदार्थ से कैसे अस्तित्व में आ सकती है |

४-     ईश्वरवादी यह तर्क देते हैं की ईश्वर रचना करता है और संहार करता है , इस पर कुमारिल भट्ट खंडन करते हुए तर्क देते हैं की जब बनाया तो नष्ट करने का उद्देश्य क्या ?क्या ईश्वर इतना बुद्धिहीन है की दुनिया को बिना नष्ट किये उसे सुधार नहीं सकता ? फिर जब एक बार नष्ट कर दिया संसार को तो दुबारा किस उद्देश्य से बनाया ? क्या दुबारा बनाने की इच्छा अपूर्ण इच्छाएं नहीं कहलाती ? यदि यही बनाना और संहार करना ही उसका काम है तो क्या वह इस काम से उकता नहीं जाता ? उबना अशरीरिक कैसे हुआ ?

इस प्रकार कुमारिल भट्ट नास्तिकता के पक्ष में बहुत से तार्किक उत्तर देते हैं , जिनका खंडन ईश्वरवादियों  के लिए कठिन है |



Wednesday 19 October 2016

दखलंदाजी -कहानी

“या हमारे दीन पर हमला है, हम यह बर्दास्त नहीं करेंगे “
“हम ईंट का जबाब पत्थर से देना जानते हैं ....सरकार यह न समझें की इस देश में हम कमजोर है ...हम अपने हक़ के लिए कुछ भी कर सकते हैं ....किसी का भी हमारे मजहब में दखल देने की इज़ाजत मंजूर नहीं .....कुराने पाक और शरियत में दखल देने की इजाजत किसी को नहीं ...अगर कोई इसमें दखल देता है तो हम उसके खिलाफ जायेंगे ..कोई भी सिविल कोड का नाम लेके यूँ हमारे मजहब से खिलवाड़ नहीं कर सकता....कोर्ट भी मजहब से बढ़ के नहीं  ” खान साहब पुरे जोश से भाषण दे रहे थे
“ बिलकुल भी नहीं ....बिलकुल भी नहीं ....हम यह बर्दास्त नहीं करगे ...अल्लाह के हुक्म में दखलंदाजी ..हरगिज नहीं ..हरगिज नहीं “ खान साहब की जोशीली तकरीर सुन भीड़ में और जोश भर गया वह उत्तेजित हो चिल्लाने लगी |

लगभग हजार की भीड़ होगी जिसे खान साहब और बाकी के कुछ ‘नेता ‘ टाइप के लोग संबोधित कर रहे थे , खान साहब एक मदरसे में मौलवी थे और दीन के विषय में काफी विद्वान व्यक्ति थे|

लगभग डेढ़ घंटे इस प्रकार की तकरीरे और भाषण देने के बाद खान साहब और अन्य कौमी नेता लोग मंच से  रुखसत हुए|

कार में बैठे खान साहब को उनके असिस्टेंट ने कहा –
“मौलवी साहब !बहुत बेहतरीन भाषण दिया आपने ...देखिये अल्लाह ने चाहा तो एक दिन आप बहुत अच्छे नेता बनेंगे|कौम की रहनुमाई करेंगे “
खान साहब उसकी बात सुन ख़ुशी से मुस्कुरा दिए और बोलेन –
“ अरे !उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारे मामलात में दखलंदाजी करने की? इस देश का मुस्लिम कमजोर नहीं जो कुरान के खिलाफ कोई बात सुने ....तीन तलाक हमारा मसला है और हम किसी को शरियत में बदलाव की इजाजत नहीं देंगे |हमारे मज़हब में तीन तलाक हक़ है और कोई भी कानून इसे रोक नहीं सकता “

”जी जनाब...बिलकुल वजा फरमाया आपने “ असिस्टेंट ने सहमती से सर हिलाते हुए कहा |

अभी बातचीत चल ही रही थी की खान साहब के फोन की घंटी बजी ,खान साहब ने जेब से मोबाइल निकाला और हेलो किया | दूसरी तरफ उनकी बेटी थी ,बेटी ने ऐसा कुछ कहा जिसको सुन खान साहब के चेहरे का रंग उड़ गया |उनके हाथ कांपने लगे, बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को काबू किया |

असिस्टेंट जब यह देखा तो उसने पुछा की क्या बात हुई ?खान साहब ने उदास होते हुए कहा –
“क्या बताऊ मिया ! बेटी रुखसाना के ससुरालवाले काफी लालची हैं ,शादी में पांच लाख कैश और अल्टो कार दी थी दहेज़ में पर हरामजादो का मन नहीं भरा और रोज कुछ न कुछ मांग करते रहते थे | न देने पर तलाक की धमकी देते रहते थे ,पिछले हफ्ते एक लाख और मांग रहे थे ...अब मेरे पास इतने पैसे अभी नहीं हैं पर ससुरालवाले मान ही नहीं रहे थे | अभी फोन आया रुखसाना का की उसको मर पीट के घर से निकाल दिया है , उसके दुल्हे शौहर ने तीन तलाक भी दे दिया |रुखसाना रोती हुई घर आ रही है ...” इतना कहा खान साहब खामोश हो गए |

फिर अचानक ही गुस्से में भर बोले –
“ ऐसे कैसे तलाक दे देंगे हरामजादे ? इस देश में कानून है की नहीं ? सालो को कोर्ट में घसीट के ले जाऊँगा ....साले पूरा परिवार दहेज़ के केस में जब जेल जायेगा तब अक्ल आएगी उन्हें ....”

उनकी बाते सुन असिस्टेंट की आँखे आश्चर्य से फ़ैल गईं|


Thursday 13 October 2016

जानिये क्या है मनोचकित्सा

मेरे एक रिस्तेदार हैं( किसी कारण से उनका  नाम नहीं ले सकता) . कल उनके घर जाना हुआ तो पता चला की उनकी पत्नी कई दिनों से बीमार हैं , कई डॉक्टर्स से उन्हें दिखाया किन्तु कोई लाभ न हुआ ।उनका दावा है की डॉक्टर्स तो उनकी पत्नी के रोग के बारे में पता भी न कर पाएं ।
इसलिए थक हार के वे निराश हो चुके थे तब एक दिन किसी पडोसी ने उन्हें गाजियाबाद के एक बाबा का नाम बताया ।यह बाबा मंत्रो के जरिये लोगो को ठीक करता है , मन्त्र मार जल पीने को देता है मरीजो को ।

उस तांत्रिक के अभिमंत्रित जल से रिस्तेदार की पत्नी ठीक होने लगी हैं और पहले से आराम है ऐसा वह कह रहे हैं ।
पर ,जंहा तक मुझे समझ आया है की यह सब ढोंग है ,वह बाबा लोगो को मुर्ख बना रहा है । तन्त्र मन्त्र से ठीक होने का दावा करने वाला व्यक्ति 99.9% कंही न कंही मनोरोगी होता है जिसके बारे में उसे भी नहीं पता होता है ।

मनोचकित्सको के अनुसार मनोरोग सैकड़ो प्रकार के होते है जिसे फोबिया भी कहते हैं ,अमूमन भारत में मनोरोग के बारे में बहुत कम जागरूकता है ।गाँव -देहात में ही नहीं शहरों में भी लोग या तो मनोरोग के बारे में जानते ही नहीं या मानते ही नहीं की उन्हें मनोरोग हुआ है ।जबकि अधिकतर व्यक्ति मनोरोग के शिकार होते हैं जिसमे सनक से लेके पागलपन तक शामिल है ।

मेरा एक मित्र है जो मंगलवार को शराब नहीं पीता जबकि अन्य दिन खूब पी सकता है । मंगलवार को शराब या मांस से परहेज करने वाले आप के आस पास भी बहुत होंगे ।इसका कारण बेशक वे 'श्रद्धा 'अथवा 'आस्था ' कहें किन्तु मनोचकित्सको के अनुसार यह 'मनोरोग ' है ।
यदि भूल से वह व्यक्ति मंगलवार को मांस या शारब पी ले तो उसे यह भयंकर अपराध बोध लगेगा जो और यह अपराधबोध सामान्य से पागलपन की हद तक जा सकता है ।जिसमे यदि व्यक्ति का कभी कोई अनिष्ट हो जाता है तो उसका कारण वह उसी अपराधबोध को मानेगा , अतः वह टोने टोटके करेगा या पागलपन वाली हरकत करेगा। यही मनोरोग है ,यह कम या ज्यादा इस पर निर्भर करेगा की वह आपनी आस्था के प्रति कितना अंधभक्त है ।

आपने अभी हाल की घटना सुनी या पढ़ी होगी की एक जैन परिवार ने आस्था के चलते अपनी 13 वर्षीय पुत्री को 64 दिनों से उपवास पर रखा जिसके चलते उस लड़की की मृत्यु हो गई ।यह मनोरोग का चरम था जिसके चलते परिवार ने लड़की को भूँखा मार दिया ।


प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रायड ने सिद्ध किया था की मानव मन के तीन धरातल होते है जो इस प्रकार है -
1-चेतन
2-अचेतन
3-अवचेतन

मन तीन प्रकार के कार्य करता है -इच्छाओ का निर्माण, इच्छाओं पर नियंत्रण और उनकी संतुष्टि ।
पहला काम भोगा पर आश्रित मन का है ,दूसरा नैतिक मन का और तीसरा अहंकार का ।इच्छाओं का निर्माण अचेतन मन में होता है , उसका नियंत्रण अवचेतन मन में और उसकी संतुष्टि चेतन मन में ।
जब भोग की इच्छित मन और नैतिक मन का संघर्ष अवचेतन मन में चला जाता है और इच्छाओं को संघर्षपूर्वक कठोरता से नैतिक मन द्वारा  दबा दिया जाता है तब यह संघर्स  अचेतन मन में चलने लगता है तब यही संघर्ष ही ' रोग' बन जाता है ।यह इच्छाये अनगिनत प्रकार की हो सकती है अतः मनोरोग भी अनगिनत प्रकार के होते हैं ।

फ्रायड ने इस संघर्ष से व्यक्ति के मन को मुक्त करने की प्रक्रिया को ही ' मनोचकित्सा 'कहा है ।अचेतन मन में चल रहे नैतिक और इच्छित मन के संघर्ष के रेचन और चेतन मन को संतुष्टि ही मनोचकित्सा है ।

बहुत बार ऐसा होता है की लंबे समय तक डॉक्टर्स की  दवाइयाँ खाने के बाद व्यक्ति जब ठीक होने की अवस्था में पहुंचता है तब वह बाबा या तांत्रिक की शरण में पहुँच जाता है ।चुकी उस उसे लगता है की दवाइयाँ खाने से कुछ नहीं हो रहा है इसलिए वह बाबा पर आस्था रख के आता है , और यही आस्था उसे यह विश्वास दिलाती है की बाबा उसे ठीक कर देंगे ।बाबा उन्हें अहसास दिला देता है की उसका मन्त्र तंत्र उसे ठीक कर देगा , तब यब आस्था काम आती है और दवाईयो का श्रेय बाबा ले जाता है ।चेतन मन संतुष्ट हो जाता है और मरीज को लगता है की वह ठीक हो गया है।

यही सब मेरे उस रिस्तेदार की पत्नी के साथ भी हुआ , बाबा के प्रति आस्था और उसका विश्वाश दिलाने से उनके चेतन मन को संतुष्टि हुई और उन्हें लगा की वह ठीक हो रही हैं ।जबकि तंत्र मन्त्र केवल बकवास है और इससे कोई लाभ नहीं होता ।


Tuesday 11 October 2016

योद्धा - कहानी

अमूमन प्रतेक रात्रि में भयंकर गर्जना कर अपनी लहरो को क्रोध में  दूर तक उछाल के जैसे सभी कुछ नष्ट कर देने की चेष्ठा करने वाला समुन्दर इस रात्रि जैसे शोक में डूबा  शांत -अचेत पड़ा हुआ  प्रतीत हो रहा था ।उसकी लहरे माध्यम गति से रेतीली भूमि से टकरा रही थीं जैसे कोई मृत्यु के निकट हो और अंतिम साँसे गिन रहा हो ।

रात्रि की कालिमा बहुत घनी प्रतीत हो रही थी , बिलकुल भयभीत करने वाली ।बीच बीच में नरभक्षी आरण्य पशुओं द्वारा हड्डियां चबाने की और माँस के लिए लड़ने झगड़ने की ध्वनियां साफ़ सुनाई दे रहीं थी ।

अभी कुछ ही पहर बीते होंगे युद्ध समाप्त हुए , नियमानुसार संध्या होने के कारण युद्ध रोक लिया गया था अब युद्ध अगले दिन आरम्भ होगा।यही युद्ध का नियम था, सूर्योदय से लेके सूर्यास्त तक ही युद्ध किया जा सकता था उसके बाद नहीं ।दोनों ओर के घायल और मृत सैनिको को अपनी अपनी सेना द्वारा उठाया जा चुका था किंतु मरने वालो की संख्या इतनी अत्यधिक थी की प्रत्येक मृत शरीर को उठाना संभव न था अतः कुछ मृत सैनिक रणभूमि जो की समुन्दर के किनारे थी छूट गए थे ।आरण्य नरभक्षी पशु उन्ही मृत सैनिको को खा रहे थे ।

लंकापति रावण निढ़ाल , निषतेज, निषप्राण  और शोकाकुल -चिंता में आकंठ डूबा एक शिलाखंड पर बैठे दूर तक फैले समुन्दर को देख रहा था ।उसे रह रह के अपने कुनबे के एक एक सदस्य की रण में मृत्यु विचलित कर रही थी ,कुम्भकर्ण,मेघनाथ आदि समस्त उसे सगे-संबंधी एक एक कर राम से लड़ते हुए रण में काम आ गए थे ।अब वह अकेला था , बिलकुल अकेला ।महल में मृत सैनिको की स्त्रियो की चीत्कार उसे विचलित कर रही थी अतःमंदोदरी के लाख समझाने के बाद भी रावण अकेला ही महल से बाहर आ गया । अपने खड़ग् को हाथो में लिए वह एकांत की तलाश में समुन्दर के तट पर पहुंचा तथा एक  शिलाखंड पर अपना खड्ग रख वह धम्म से बैठ गया ।

रावण एकटकी लगाये विशाल समुन्दर जो इस समय उसी की तरह निस्तेज लगा रहा था उसे देख रहा था की एकाएक किसी की वाणी उसके कानो में गूंजी।

" दौहित्र...दौहित्र..'
"दौहित्र .... रावण '

रावण के विचार एकाएक भंग हुए और उसका हाथ खड्ग की तरफ बढ़ा की उसे लगा की यह वाणी तो जानी पहचानी है ,बिलकुल किसी अपने की ।यह वाणी तो वह बचपन से सुनता आ रहा था , किसी अपने प्रिय की ।
रावण ने अपने नेत्र फैला के अंधेरे में और स्पष्ट देखने की चेष्ठा की तो उसे एक साया दिखा ।

साया चलता हुआ उसके और समीप आ गया ।
'' प्रिय रावण...''साये ने बिलकुल करीब आ संबोधित किया

सहसा रावण को अपने नेत्रो पर विश्वास न हुआ किन्तु जब साया बिलकुल समीप आ गया तो रावण ने साये का मुख देखा ।
"मातामह..."
" मातामह...आप!!"यह रावण का नाना सुमाली था ।सुमाली , जिसे रावण सबसे प्रिय था और रावण भी सबसे ज्यादा स्नेह  रखता था अपने नाना । सुमाली ने ही रावण को बलवान और इतना बड़ा योद्धा बनाया था अतः सुमाली के प्रति रावण का विशेष अनुग्रह था , रावण सुमाली को अपना मार्गदर्शक मानता था ।

किन्तु सुमाली कैसे आ सकता है ?रावण के मन में यह प्रश्न उठा , वह कुछ पूछने वाला ही था सुमाली ने हाथ के संकेत  से उसके सभी प्रश्नवाचक ज्वारो को शांत रहने को कहा ।

"प्रिय रावण!इतना व्याकुल क्यों हो? "
"मातामह ! मेरे सभी सगे- संबंधी , सेनापति सैनिक सब युद्ध में काम आ गए .... बिलकुल अकेला हो गया हूँ मैं ... स्त्रियो की चीत्कार मुझे व्याकुल कर रही है ...शत्रु और समीप आता जा रहा है ..लंका में पुरुषो के नाम पर थोड़े से सैनिक और बूढ़े बचे हुए हैं ....आह! मेरा प्रिय इंद्रजीत और कुम्भकर्ण दोनों मुझे छोड़ के चले गए " कहते कहते रावण के नेत्रो से अश्रु निकल अधरों तक लुडक गए ।
" मातामह, कभी कभी विचार करता हूँ की सीता को लौटा दूँ और यह रक्तपात समाप्त कर दूँ "रावण ने एक बार फिर समुन्दर पर नजर डाली और कहा ।
"दौहित्र!क्या तुम यह समझ रहे हो की राम युद्ध सीता के लिए कर रहे हैं ?न यह सत्य नहीं है ! राम सीता के लिय युद्ध नहीं कर रहे हैं " सुमाली ने रावण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।
" क्या !!क्या कह रहे हैं आप मातामह? राम सीता के अनुग्रह नहीं रखते? क्या वे सीता के वियोग में लंका से युद्ध नहीं कर रहे हैं ?रावण ने श्यामवर्णीय मुख पर आश्चर्य के अनेक भाव एक साथ उतपन्न हो गए ।

"वस्तुतःनहीं! वे युद्ध इस लिए कर रहे है की लंका जो की  अनार्य संस्कृति है उसे आर्य संस्कृति में बदला जा सके ।राम ऐसा बालि के वध के उपरांत कर चुके हैं , वैदिक ऋषि विश्वामित्र उनके मार्गदर्शक हैं उन्ही की आज्ञा से राम वैदिक धर्म प्रचारित कर रहे हैं , चुकी तुम अनार्य धर्म के सबसे रक्षक हो अतः तुम्हे समाप्त किये बिना उनका अभियान अधूरा रहेगा  ।राम जानते थे की सुग्रीव आसानी से संधि कर लेगा क्यों की वह धूर्त बाली की पत्नी और राज्य पर कुदृष्टि रखता है उसका मंतव्य बाली को समाप्त कर राजा बनने का है जिसके बारे में वह एक बार चेष्टा भी कर चुका था ।अतः सुग्रीव से यही वचन भरवाये थे राम ने और संधि भी इसी आधार पर हुई की वह किसकिन्धापुरी में वैदिक धर्म का प्रचार करेगा तथा लंका विजय में सहायता करेगा  , बालि को समाप्त करने के बाद ऐसा हुआ भी " सुमाली शांत भाव से सब कहे जा रहा था और रावण बुत सा सब सुने जा रहा था ।

"विभीषण भी इसी मंशा से राम के साथ मिला है ताकि वह तुम्हारे उपरांत लंका के वैभव को भोग कर सके , उसकी इच्छा तुम्हारे  सिंहासन पर विराजमान होना है यंहा तक की तुम्हरी पटरानियों को भी प्राप्त करना चाहता है ....अनार्य संस्कृति पर ये दोनों  विश्वशघाति बहुत अनर्थ करेंगे भविष्य में ....अनार्य संस्कृति लुप्त हो जायेगी और गुलाम बना ली जायेगी " इतना कह सुमाली खामोश हो गया ।

" नहीं!!... कदापि नहीं .....रावण के जीवित रहते हुए ऐसा नहीं हो सकता ... अनार्य संस्कृति कभी मिट नहीं सकती .. मैं हर एक हाथ को काट दूंगा जो रक्ष संस्कृति की तरफ उठेगा ... " रावण क्रोध से चीत्कार उठा
" तथास्तु प्रिय दौहित्र ... किन्तु वे लोग तुम्हे दस सिरो वाला ,क्रूर, अन्यायी ,भयंकर रूप रंगवाला आदि कितने ही विकृत नामो से प्रचारित करेंगे " सुमाली ने रावण को समझाया ।

"परवाह नहीं मातामह, चिंता नहीं ... वे लोग मुझे क्या कह प्रचारित करेंगे इसका शोक न होगा लंका रहे या न किन्तु मैं अपने जीवित रहते वैदिक संस्कृति को लंका पर हावी न होने दूंगा ... उसे कभी लंका में प्रचारित न होने दूंगा  , मैं प्रचारित न होने दूंगा वर्ण व्यवस्था को, पशुबलि , नरमेध यज्ञ , अश्वमेध यज्ञ तथा अनेक कर्मकांडो को ...मैं जीते जी लंका में प्रचलित न होने दूंगा वैदिक संस्कृति को "
 - इतना कह रावण ने हुँहकर भरी और अपना खड्ग उठा तेज गति से अपने महल की तरफ चल दिया , कल के युद्ध की तैयारी करने ।अब उसके मुख शोकाकुल  नहीं अपितु सूर्य सा प्रकाश था , निढ़ाल भुजाओ में पहले सी शक्ति संचालित हो गई थी, आँखों की लालिमा फिर से वापस आ गई जिससे इंद्र जैसे देवता भी भय खाते रहे थे  ।



Friday 7 October 2016

चरवाहा-कहानी

" हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...
जैसी आवाजें निकालता हुआ मुन्नालाल  जंगल से अपने जानवरो को हांकता हुआ घर लौट रहा था ।पांच बकरियां , दो भैंसे और एक गाय का मालिक था मुन्नालाल , खेतो के किनारे बनी मुश्किल से दो फुट की पगडड्डी पर बड़े ध्यान से और बड़ी सधे हुए चाल से हाँक रहा था वह जानवरो को ।रास्ते के दोनों तरफ गेंहू की फ़सल लह लहा रही थी , स्वभाव से चंचल बकरियां जंगल में पेट भर चरने के बाद भी ललचाई नजरो से गेंहू के हरे हरे पौधों को घूर घूर के देख रहीं थी और जैसे ही मुन्नालाल जरा सा नजरो से चूकता दौड़ के खेतो में मुंह मार देती ।तब मुन्नालाल अपने सोंटे से उनकी पिटाई करता ।

मुन्नालाल रोज इसी तरह जंगल से अपने जानवर चरा के लाता , जंगल में तो जानवर खूब उछल कूद करते और जंहा मर्जी चरते मुन्नालाल उन्हें न टोकता किन्तु जैसे ही वह गाँव की सीमा में प्रवेश करता बहुत सतर्क हो जाता ।अभी तीन महीने पहले जंगल से आते समय वह लघुशंका करने लगा था की इतने में बकरियों ने प्रतापचन्द ठाकुर के खेतो में घुस के खड़ी मटर की फसल को नुकसान पहुंचा दिया ।
जब प्रतापचंद को पता चला तो बहुत भला बुरा कहा ,नौबत मार पीट तक आ गई तब सुलह के लिए मुन्नालाल को एक बकरी का बच्चा देना पड़ा था अन्यथा वे उसके जानवरो को कानीहौज तक पहुंचा देता ।

तब से मुन्नालाल बड़ा सतर्क रहता आते जाते वक्त ।

मुन्नालाल के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः जीविका का मुख्य साधन उसके पशु ही थे ।मुन्नालाल पशुओ के बच्चे खरीद लेता था और उन्हें पालता था जब वे बड़े हो जाते तो अच्छे मुनाफे में उन्हें बाजार में बेच देता , जो पशुओ से दूध प्राप्त होता  वह उसकी अतरिक्त आय होती।

मुन्नालाल का एक ही लड़का था लखपत , लखपत शुरू से ही पढ़ने में बुद्धिमान  था अतः मुन्नालाल ने उसे पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।मुन्नालाल सोचता की लखपत पढ़ लिख जायेगा तो कोई अच्छा काम करेगा उसकी तरह अनपढ़ हो  चरवाही नहीं करेगा ।
स्कूली शिक्षा लेने के बाद लखपत ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेना चाहा था मुन्नालाल बहुत खुश हुआ था , उसने अपनी पत्नी के गहने तो बेच ही दिए थे साथ में अपनी जो थोड़ी सी जमीन थी वह भी बेंच दी ।उसे यकीन था की लखपत पढ़ लिख के उसका नाम तो रौशन करेगा ही पुरे रिस्तेदारो का नाम भी रौशन करेगा ।

गाँव में तो छोड़िये, पुरे जवार में भी लखपत जैसा पढ़ने में बुद्धिमान कोई न था आखिर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश
पाना कोई सरल तो न था ।

दिन बीतते गए, और लखपत आगे बढ़ता गया ।

इधर मुन्नालाल की जिंदगी वैसे ही चलती रही , वही जानवरो को जंगल में चराना और शाम को उन्हें खेतो से बचा के घर लाना ।

अब लखपत एक इंजिनियर बन चुका था , शहर में ऊँचे वेतन वाली नौकरी और बड़ा सा फ्लैट जल्द ही प्राप्त हो गए उसे । विवाह भी एक सम्पन्न परीवार की कन्या से  हो गया ,जीवन की सभी सुख सुविधाये और मान-सम्मान उसके पास था ।

मुन्नालाल अब बूढ़ा हो चुका था , पत्नी भी बीमार अमूमन बीमार सी ही रहती ।पशुओ की देखभाल न कर पाने के कारण उसने सभी पशु बेच दिए थे , जो लखपत पैसे भेजता उसी से निर्वाह हो रहा था ।यूँ तो लखपत हर माह निश्चित धन मुन्नालाल को भेज देता था खर्चे के लिए  किन्तु मुन्नालाल चाहता था की इस बुढ़ापे में वह और उसकी पत्नी लखपत के साथ रहें , अकेलापन उसे अखरता था ।
सच यह था की जिंदगी भर गाँव, जंगल और जानवरो के बीच रह रह के वह नीरस हो गया था ।
अब वह और उसकी पत्नी शहर में लखपत के साथ बचे हूए दिन आराम से काटना चाहते थे ।

लखपत से कई बार अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद आखिर लखपत ने मुन्नालाल और उसकी पत्नी को अपने पास शहर बुला ही लिया ।

शहर आके मुन्नालाल बहुत खुश हुआ ,बड़ी बड़ी इमारते, चमकती गाड़िया, रंग बिरंगे परिधान में स्त्री पुरुष , साफ़ सड़के आदि उसे रोमांचित कर दे रहे थे ।वह तो जैसे सपनो की दुनिया में आ गया हो , लखपत में घर में सभी आधुनिक सुविधाये मौजूद थी जिनका वह जी भर के मजा ले रहा था ।

लखपत ने दो कुत्ते पाल रखे थे जिनको उसका नौकर देखभाल करता था , वह कुत्तो को नहलाता, खाना खिलाता तथा उन्हें बाहर घुमाने ले जाता ।

एक दिन मुन्नालाल सोफे पर बैठा टीवी देख जोर जोर से हँस रहा था ,उसे ऐसा करता देख दूसरे मौजूद लखपत की पत्नी ने चिढ़ते हुए लखपत से कहा -

" जब देखो सोफे पर बैठे बैठे टीवी देखते रहते है और चाय पानी की फरमाइस करते रहते हैं " लखपत की पत्नी ने कहा
"ओहो!तो क्या हो गया... नौकर तो है न !" लखपत ने उत्तर दिया
"नौकर तो हैं पर सारा दिन इन्ही की जी हुजूरी में लगे रहेगे तो बाकि के काम कब करेंगे वे ?" पत्नी ने थोडा गुस्से में जबाब दिया
" तो क्या करें ? गाँव तो भेज नहीं सकते फिर से ...  " लखपत ने असमर्थता जताते हुए कहा ।
" गाँव भेजने की जरुरत नहीं .... एक  आइडिया है मेरे पास " पत्नी ने लखपत से मुस्कुराते हुए कहा ।

फिर उसके बाद लखपत की पत्नी लखपत के कान में कुछ कहने लगी जिसे सुन लखपत मुस्कुरा दिया ।

अगले सुबह कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर नहीं आया, लखपत ने मुन्नालाल से कहा -
" बाबू जी , कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर बीमार है और कुछ दिन नहीं आएगा .... आप गाँव में तो जानवरो की देखभाल करते ही थे ... कुछ दिन कुत्तो को संभाल लीजिये "

लखपत की बात सुन मुन्नालाल को आश्चर्य हुआ , जिंदगी भर तो जानवरो की देखभाल करता ही रहा है वह ।बुढ़ापे में जानवरो से दूर रहे इसी लिए वह लखपत के पास आया है और वह कुत्तो की देखभाल करने को कह रहा है .... और फिर उसने तो गाय भैंसो और बकरियो की देखभाल की है कुत्तो की नहीं ।
मुन्नालाल चाह के भी मना नहीं कर पाया लखपत को ,और  कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था उसके पास ।

अब मुन्नालाल सुबह पांच बजे उठ जाता , कुत्तो को दो घण्टे बाहर घुमा के लाता फिर उनको नहलाता उन्हें खिलाता शाम को भी यही नियम बन गया था। कई दिन बीत गए किन्तु कुत्तो की देखभाल कारने वाला नौकर वापस नहीं आया, मन मार के मुन्नालाल को ही देखभाल कारना पड़ रहा था कुत्तो का ।कई बार कुत्तो को सम्भलना बड़ा मुश्किल हो जाता था बूढ़े मुन्नालाल के लिए ,गांव में तो कुछ दुरी पर ही बकरियो से खेतो को बचाना पड़ता था किन्तु यंहा तो कुत्तो पर पुरे समय नजर रखनी पड़ती थी ।
 एक बार तो एक कुत्ते ने स्कूल जाते हुए एक बच्चे को काट लिया था तब कितना गुस्सा हुआ था लखपत उस पर उसकी पत्नी ने अलग से उस पर लापरवाही का इल्जाम लगाया था  ,उसकी आँखों से आंसू ही निकल आये थे बुढ़ापे में यह बेज्जती ।


मुन्नालाल अब और सतर्कता से कुत्तो की देखभाल करता ताकि उससे कंही गलती न हो जाये , हाथ में जंजीर पकडे वह कुत्तो के साथ साथ ही चलता ...वह चरवाहा ही रहा बस जानवर बदल गए थे।
हाँ ! अब
हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...

के स्थान पर मुंह से -
आऊ.....आउ
ले...ले..
की ध्वनी निकालता


बस यंही तक थी कहानी ....





Tuesday 4 October 2016

जानिया क्या है दुर्गा पूजा की वास्तविकता

दुर्गा पूजा के विषय में देवीप्रसाद चट्टोपाध्य जी मत प्रकट करते हैं की जो प्रतिमा आज हम देवी दुर्गा की देखते हैं अर्थात सिंहारुड़, दस हाथो वाली , त्रिशूल आदि शस्त्र धारणा किये हुए वास्तव में दुर्गापूजा के मूलभूत सार के साथ इसका कोई वास्तविक धर्मिक सम्बन्ध नहीं है ।वे प्रसिद्ध इतिहासकार बंदोपाध्याय का हवाला देते हुए कहते हैं की अभी एक शताब्दी पहले बंगाल जो की दुर्गा पूजा का केंद्र है  वंहा के  मूर्तिकारों को दस हाथो वाली , त्रिशूल धारी, सिंह सवार देवी के बारे में कुछ पता नहीं था ।

यद्यपि आज इस दस हाथो वाली त्रिशूल धारी मूर्ति की सवारी बड़े धूम धाम से निकाली जाती है किंतु वास्तव में इसका दुर्गा की वास्तविक आराधना से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है यंहा तक की इसका दुर्गा नाम कैसे पड़ा यह विषय भी आज के शोध कर्ताओ के लिए अच्छा विषय हो सकता ही ।

वास्तव में दुर्गापूजा 'शाकम्भरी' पूजा या अनुष्ठान है , जो कृषि की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए तांत्रिक अनुष्ठान होता है जो 'पूर्ण घट' केंद्रित होता है ।

जैसा की मैंने अपने पहले के लेखो में बताया है की कृषि स्त्रियों की खोज है अतः कृषि से जुड़े जितने अनुष्ठान है वे स्त्रियों से जुड़े हुए हैं , कृषि और स्त्री को समान माना गया है ।कृषि में उत्पादन की वृद्धि के लिए विश्व के अलग अलग देशो में कई प्रकार के अनुष्ठान किये जाते रहे हैं ।

ट्रांसलविनिया के एक जिले में सूखे के कारण जब सारी जमीन बुरी तरह झुलस जाती है तब कुछ लड़कियां एक दम नग्न हो जाती हैं और खेतो में पहुँच के नृत्य करती है ,उनका विश्वास होता है की इस अनुष्ठान से वर्षा होगी।

उत्तरी अमरीका में जब आनाज को कीड़ा लगता है तो जिन स्त्रियों का मासिक धर्म चल रहा होता है वे रात के एकांत में एक दम नग्न अवस्था में खेतो में चलती हैं ,प्लिनी ने इन हानिकारक कीड़ो के प्रतिकारक के रूप में यह  उपाय बताया है। इसके पीछे विचार यही था की स्त्रियों के अंदर जो उर्वरक शक्ति होती है उसका प्रसार हो और वह प्रसार कृषि तक आये ।ऐसा ही मत ग्रीस आदि देशो में भी प्रचलित रहा है ।

भारतीयो में भी ऐसे तांत्रिक अनुष्ठान सम्बन्धी प्रथाए प्रचलित रही हैं , आप ऐसे अनुष्ठान क्रुक की पुस्तक 'न्यूडिटी इन इण्डिया इन कस्टम एन्ड रिचुअल्स ' में पढ़ सकते हैं ।
'भारतीय विद्या 'नाम की पुस्तक में जिक्र है की जब कभी उत्तरी बंगाल में सूखा पड़ता था तब राजवंशी लोगो की स्त्रियां सब कपडे उतार देती थी और पूर्ण नग्न अवस्था में वरुण देवता के आवाह्न के लिए नृत्य करती थीं।

गुजरात में ऐसी रीतियों थीं , यह रीति विशेषकर कुर्मी, नोनिया , कहार , चमार , दुसाध , धामका जातियो में थी जो श्रमिक थीं ।

आप को एक दिलचस्प तथ्य और बताऊँ  की हड़प्पा में एक आयतकर पट्टी जिस पर एक नग्न स्त्री का चित्र बना है प्राप्त हुई है , जिसकी दोनों टाँगे खुली हुई हैं ।यह चित्र उल्टा बनाया गया है जिसकी दोनों टाँगे खुली हुई हैं और उसके गर्भ से एक पौधा निकल रहा है , इसके ऊपर 6 अक्षर खुदे हुए है जो शायद शाकम्भरी नाम पर कुछ जानकारी देते हैं।


यह चित्र निश्चय ही धरती को माता(स्त्री) की मान्यता को दर्शाता है ।यह चित्र धरती और स्त्री को समान मान्यता की प्रबलता का द्योतक है जिसमे दोनों ही उत्पादन अथवा प्रजनन करती हैं ।

बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म दोनों में धरती को स्त्री माना गया है और शाकम्भरी नाम इंगित है जैसे बुद्ध शाक्य वंशीय थे , शाक्य का अर्थ साग सब्जी अथवा पेड़ पौधे होता है ।
हिन्दू ग्रन्थ मार्कंडेय पुराण , सर्ग 92, श्लोक 43-44 में कहा गया है-
 "हे देवताओ! इसके बाद मैं जीवन पोषक साग सब्जियों के साथ सारे विश्व का पालन पोषण करुँगी ।साग सब्जियों वर्षा के बाद मेरे शरीर से उत्तपन्न होंगे , तब मैं पृथ्वी पर शाकम्बरी के नाम से प्रसिद्ध होंगी "

इस हड़प्पा में मिले धरती ( शाकम्बरी )  चित्र के विषय में मार्शल का कहना है " धरती को उसके गर्भ से उगे हुए एक पौधे के साथ प्रस्तुत करने वाला यह चित्र अनूठा है किन्तु धरती को स्त्री के रूप में प्रस्तुतिकरण अप्राकृतिक नहीं है बल्कि ऐसा विश्व की कई सभ्यताओ में मान्यता रही है "

अब हम आते है अपने मूल लेख पर अर्थात दुर्गा पूजा पर , जैसा की मैंने बताया है की अभी लगभग कुछ सदी पहले बंगाल में सिंह सवार , त्रिशूल धारी दुर्गा के विषय में वंहा के मूर्तिकार नहीं जानते थे ।दुर्गा पूजा के समय एक घट रखा होता है जो तांत्रिक अनुष्ठान का द्योतक है , मुख्य अनुष्ठान इसी घट की होती है ।

घट पूर्ण जल से भरा मिटटी का एक पात्र होता है , जो इस प्रकार रखा जाता है -पांच प्रकार के आनाज (पंच शाक्य) मिटटी की एक चपटी तथा चौकोर आकार की पट्टिका पर बिखेरे जाते हैं ।फिर मिटटी के एक पात्र को पानी से भरकर उसके ऊपर रखा जाता है ।दही और चावल मिलाकर इस पात्र पर रख दिया जाता है ,घट ( घड़ा) के गर्दन के चारो ओर लाल रंग का सूत बांध दिया जाता है ।इसके खुले मुख को पांच प्रकार की पत्तियो से ढँक देते हैं , फिर एक मिटटी का ढक्कन इन पत्तियो पर रख दिया जाता है और इस ढक्कन के ऊपर चावल और सुपारी रखते हैं ।


चावल वाले इस ढक्कन पर फिर ओर एक फल अधिकतर हरा नारियल रखा जाता है , इस नारियल पर सिंदूर लगाया जाता है ।घड़े पर गीले सिंदूर से मानव चित्र बनाते हैं इसे सिंदूर पुत्तलि कहा जाता है ।

मैं आपको चित्र दे रहा हूँ ताकि आप अच्छी तरह समझ सकें।

जिस पट्टिका पर घट रखा जाता है उस पर एक रेखाकृति बनी होती है जिसे सर्वतोभद्र मण्डलम् कहा जाता है , यह रेखाचित्र तंत्रवाद का प्रसिद्ध चित्र है जिसे यंत्र कहा जाता है ।इसके बीच आठ पंखडियो वाले कमल का चित्र होता है जिसे अष्ट दल पद्म कहा जाता है , अब याद कीजिये बौद्ध धर्म का आष्टांगिक मार्ग को।

तंत्रवाद में यह कमल मुखयतः स्त्री की योनि का प्रतिकात्मक चिन्ह है अब समझिये की सर्वतोभद्र मण्डलम् के ऊपर पूर्ण घट रखने का क्या महत्व है ।

पौधो और फलों को स्त्री की योनि के संपर्क में लाया जाता है , यही विचार स्वयं पूर्ण घट भी प्रदर्शित करता है ।यह घड़ा स्त्री गर्भ है , जो सिंदूर से मानव आकृति बनाई जाती है वह शिशु है , सिंदूर और लाल सूत रजस्वला का संकेत है ।

तंत्र के जरिये यह उस विश्वास का द्योतक है की मानव प्रजनन क्रिया या स्त्री प्रजनन क्रिया शक्ति के अनुकरण या संसर्ग से प्रकृति की उत्पादकता निश्चित होती है या वृद्धि होती है । दुर्गा पूजा में सिंदूर का प्रयोग होता जिसे रंग खेला भी कहा जाता ,रंग खेला वास्तव में स्त्री के रजस्वला का द्योतक है अच्छी प्रजनन शक्ति की कामना |

अत: दुर्गा पूजा का मूल महत्व यही है , यह कृषि सम्बन्धी जादू टोना मात्र है ।दुर्गा जी के हाथो में घट देखिये \










Sunday 2 October 2016

ताकि मिलता रहे न्याय -




"सरपंच जी ! पर वह ज़मीन तो हमारी है , आई बाबा के ज़माने से खेती करते आये हैं उस पर " सुरेखा ने घूँघट किये ही जबाब दिया ।
" चुप कर साली! मर्दों के बीच में ऐसी तैसी करवाने बैठी है? ... चपर चपर जुबान मत चला यंहा " सरपंच ने अपनी  छड़ी सुरेखा की तरफ करते हुए क्रोध में भरे शब्दों में कहा ।
"जब तुझे बोलने को कहा जाए तब बोलियो .... अभी मादरजात चुप चाप बैठी रह ..." सरपंच ने आगे कहा ।
" हाँ ...सुन भैयालाल ...ध्यान से सुन ..जिस पांच एकड़ जमीन की दावेदारी तुम लोग कर रहे हो वह तुम्हारी जमीन नहीं है ....अरे मादरजातो तुम्हारे बाप दादा दुसरो के टुकड़ो पर पलते थे और तुम अपनी जमीन की दावेदारी कर रहे हो...कौन सी ज़मीन है तुम्हारी  ? पंचायत का समय बर्बाद कर रहे हो ? इसका जुर्माना हजार रुपया भरना पड़ेगा "

"पर...पर सरपंच जी हमारी बात ... "भैयालाल ने कुछ कहना चाहा
"चुप!...चुप ... हमारी बात टालेगा  तू? कल से तेरा हुक्का पानी बंद करवा दूंगा " भैयालाल का यूँ बीच में बोलना सरपंच को जँचा नहीं और उसने उसकी बात काटते हुए चेतावनी दी ।

इसके बाद पंचायत खत्म कर दी गई , भैयालाल और उसकी पत्नी सुरेखा ने दुखी मन से अपने घर वापस हो लिए ।

यह कहानी है आज से दस साल पहले की ,महाराष्ट्र् के भंडारा जिले के एक छोटे से गाँव की ।भैयालाल भातमांगे  उसकी पत्नी सुरेखा तथा उनके दो बेटे दीपक और रौशन तथा बेटा प्रियंका की ।रौशन जन्म से अँधा था ।

ऊपर जो पंचायत की घटना थी वह  उस 5 एकड़ जमीन के विवाद की थी जिस पर भैयालाल और सुरेखा अपना हक़ जाता रहे थे किन्तु गाँव के वर्चस्वी जातियां अपना कब्ज़ा जमा रही थीं ।मामला पंचायत तक पहुंचा और सरपंच ने वही फैसला सुनाया जो ऊपर बताया गया ।गाँव में मात्र 4 परीवार दलित के थे बाकी सब वर्चस्वकारी जातियां थीं।

कुछ दिन बाद ।

"अजी सुनते हो !"सुरेखा ने भैयालाल की संबोधित किया
"हूँ ?..... क्या है ? "भैयालाल ने नीम की दातुन मुंह में डाले डाले पूछा।
" मैं यह कह रही थी की कब तक इस कच्चे घर में रहेंगे ? अब बच्चे बड़े होने लगे हैं .... मैं कह रही थी की दो कमरे पक्के ईंट के बन जाते तो अच्छा रहता " सुरेखा ने पानी का लोटा भैयालाल को पकड़ाते हुए कहा ।
"हम्म....कह तो तू ठीक रही है .... ज़मीन तो चली ही गई समझो कम से कम रहने का ठिकाना तो पक्का हो जाए , बरसात में कितनी तकलीफ होती है ... ठीक है कल ही ईंट गिरवाता हूँ भट्टे से " भैयालाल ने कुल्ला करते हुए सांत्वना दी सुरेखा को , सुरेखा मुस्कुरा दी ।

अगले दिन दो हजार ईंटे ट्रॉली पर द्वारा भैयालाल के घर पहुँच गई ।भैयालाल का पक्का मकान बनेगा यह गाँव के वर्चस्वकारी जाति के लोगो को एक आँख भी न सुहाया ।भला यह कैसे हो सकता है की एक दलित के उनके गाँव में पक्का मकान बने ?अतः पूरा वर्चस्वकारी जातियो का समूह पहुँच गया भैयालाल के घर ।

"क्या रे भैयालाल ? तेरे पर ज्यादा चर्बी चढ़ गई ? पक्के मकान में रहेगा? " भीड़ में से एक ने भैयालाल की गर्दन पकड़ते हुए कहा
"पर भाऊ .... मेरा मकान जर्जर हो गया है ... देखो ने आप लोग ... पानी टपकता है बरसात में " भैयालाल ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास किया ।
"नहीं !तेरे में गर्मी ज्यादा आ गई है ......कुत्ते ...मादर#@ पहले हमारे खिलाफ पंचायत में जाता है और अब पक्का मकान बना रहा है... चटाक!!"भीड़ में से दूसरा व्यक्ति निकला और भैयालाल को चांटा मारते हुए कहा ।
चांटा खा के भैयालाल दर्द से कराह उठा।
"सुन ....हरामी ....मकान में एक भी ईंट लग गई तो तुझे उसी नीव में जिन्दा गाड़ देंगे " तीसरे ने सुरेखा को चेतावनी देते हुये कहा ।

उसके बाद भीड़ ने ईंटो को तोड़ दिया और बहुत सी ईंटे अपने साथ ले गई ।
पीछे भैयालाल का पूरा परिवार भय और आतंक से बिलखकता रहा।

थोड़े दिनों बाद घटना ।

सुरेखा एक खेत में काम कर रही थी की पास के दूसरे गाँव का दलित व्यक्ति जिसका नाम कामतेप्रसाद था वह भी मजदूरी कर रहा था ।कामते प्रसाद का  किसी बात पर उच्च जातीय मालिक से विवाद हो जाता है , मालिक और कई सारे लोग कामते प्रसाद को बहुत मारते पीटते है जिससे उसे गंभीर चोटे आती हैं ।बात पुलिस तक पहुँचती है ,थाने में सुरेखा कामते प्रसाद के दोषियों को पहचान कर देती है की किस किस ने कामते प्रसाद को मारा है ।

दोषी गिरफ्तार कर लिए जाते हैं पर उसी दिन ही जमानत लेके छूट जाते हैं ।
किंतु, यह तो वर्चस्वकारी जातियो के लिए असहनीय हो जाता है की एक दलित उनके खिलाफ थाने में गवाही दे ,यह तो सरासर अपमान लगा उन्हें अपने प्रति ।

अगले दिन वे लोग सुरेखा के गाँव अपनी जाति के लोगो के पास पहुँच जाते है ,सुरेखा के गांव के वर्चस्वकारी जाति के लोग पहले से ही जमीन आदि को लेके रंजिश रखे हुए थे, और अब सुरेखा की हिम्मत पुलिस तक जाने की हो गई थी ।उन्हें लगा की यदि इसी तरह हिम्मत आती रही तो कल को उनके खिलाफ भी पुलिस तक जा सकती  अतः उन्होंने सुरेखा और उसके परिवार वालो को सबक सिखाने की सोची ।

सैकड़ो की भीड़ एकत्रित हो चल पड़ी भैयालाल के घर की तरह,सबके हाथो में कुछ न कुछ हथियार के तौर पर था
।लगभग सौ घरो के गाँव में मात्र 4 घर दलितों के थे ,वर्चस्वकारी जातियॉ की उग्र भीड़ अपने घरो की तरफ आते देख भय से चारो घर के दरवाज़े बंद कर लिए गए ।

भीड़ भैयालाल के घर के आगे रुकी और दरवाजे पर खड़ी खड़ी गलियों की देने लगी -
" निकलो हरामजादों ... निकल कुतिया !साली गवाही देगी पुलिस को ... निकल "भीड़ सुरेखा के घर के दरवाजे को पीटते हुए कह रही थी ।
अंदर भैयालाल ,सुरेखा और उसके बच्चे मारे डर के कोने में छुपे कांप रहे थे ।

थोड़ी ही देर में भीड़ ने दरवाज़े को उखाड़ दिया , पुरे परिवार को खींच के बाहर निकाल लिया गया ।भीड़ ने लाठी डाँडो से भैयालाल ,दीपक और रौशन पर हमला कर दिया ।रौशन तो जन्म से अँधा था किन्तु भीड़ ने उस पर भी  तरस न खाया ।

भीड़ में से कुछ लोग सुरेखा और उसकी बेटी प्रियंका को मारते पीटते झाड़ियो के पीछे ले गए , उसके बाद उनकी सिर्फ चीखे ही सुनाई आई ।

भीड़ ने पूरा घर तबाह कर दिया,रौशन और दीपक को पीट पीट कर मार दिया गया भैयालाल को मरा समझ के छोड़ा । सुरेखा और प्रियंका को मार दिया गया था , उनके शरीर पर कपड़ो के नाम पर चीथड़े थे शरीर का एक भी अंग ऐसा न था जन्हा घाव न थे ...... दोनों के हर अंग पर गहरे घाव के निशान थे ...हर अंग पर।चार लाशें बिछ गईं थी , केवल भैयालाल की सांसे चल रही थी ।

पुलिस बहुत देर में पहुंची ,कार्यवाई तो और भी सुस्त हुई लाशो का पोस्टमार्टम ठीक से नहीं किया गया ।मामला दबने वाला था की कुछ पत्रकारो ने दिलचस्पी ली अतः केस कोर्ट तक पहुंचा ।फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस की सुनवाई हुई जिसमे 54 आरोपी बनाये गए ,जिसमे 4 को मृत्यु दंड की सजा हुई और दो को ता-उम्र कैद। आरोपियों पर sc/st ऐक्ट के तहत केस दर्ज नहीं हुआ था  ,बाद में उच्च न्यायलय ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए आरोपियों को मृत्यु दंड की जगह आजीवन कारावास की सजा दी ।

भैयालाल को गांव छोडना पड़ा,अपनी 5एकड़ जमीन और घर दोनों को छोड़ के जाना पड़ा , sc/st ऐक्ट के तहत केस न दर्ज होने के कारण उन्हें मुआवजा भी न मिला ।दस साल हो गए किन्तु न्याय की लड़ाई जारी है ।आज भी महाराष्ट्र् में  वर्चस्वकारी जातियां sc/st ऐक्ट को ख़त्म करने के लिए गोल बंद हो रहीं है ताकि भैयालाल जैसे लोगो को न्याय न मिल पाये ।