Tuesday 8 November 2016

अंकल-कहानी



सूर्य अभी भी चेहरे  पर लालिमा लिए हुए अनमना सा नींद में चलता चला आ रहा था ,किरणें धरती पर इस           प्रकार पड़ रही थी जैसे सूर्य ने इन्हें कैद किया हुआ हो और  गलती से कोई झरोखा खुला रह गया जिसमें से ये निकल निकल के भागती हुईं धरती की शरण में आ रही हों ।कलियाँ मानो रात भर की लंबी प्रतीक्षा  के बाद मुस्कुराती हुईँ   अपने प्रीतम भँवरों से आलिंगन के लिए  व्याकुल हों ।शीत ऋतु का आरम्भ ही था और हलकी सर्दी मासूस होनी शुरू हो गई थी , दिन भर भीड़ भाड़ की भाग दौड़ झेलने वाली सड़क अभी थोड़ा  सुस्त सी पड़ी थी ।इक्का- दुक्का लोग ही दिख पड़ते थे , उनमे से  भी ज्यादातर मोर्निंग वाक करने वाले अथवा  स्कूल कालेज जाने वाले विद्यार्थी ही थे ।

रोजाना की तरह करमू अपनी नाइट  ड्यूटी ख़त्म कर साईकिल में तेज तेज पैडल मारता हुआ   घर की तरफ ख़ामोशी से बढ़ा चला जा रहा था ।  उसे बाहर फैले मनोरम दृश्यों की अनुभूति करने की जरा सी भी फुर्सत  न थी , वह  चेहरे पर काम  की लम्बी थकान लिए  बस घर की तरफ भागा जा रहा था ताकि जल्दी से बिस्तर की आगोश में समा सके और ऐसा हो भी क्यों न ! था तो वह एक सिक्योरटी गार्ड जो 36 घण्टे की लगातार थकाऊ खड़े  रहने की ड्यूटी पूरी कर के आ रहा था , ऐसा  वह महीने में लगभग कई बार करता ताकि वह ओवरटाइम कर थोड़े अधिक पैसे कमा सके ।

करमू  एक मोड़ पर पहुंचा ही था कि अचानक उसके सामने तेज रफ्तार से बाइक आ गई , ऐसा लगा की बाइक उस से बुरी तरह टकरा जायेगी ।वह हड़बड़ाया  और बचने के लिए हैंडल एक तरफ मोड़ लिया जिससे वह डिवाइडर से टकरा गया  ।बाइक वाले ने भी साइकिल से बचने के  लिए जोरदार  ब्रेक लगाएं , एक तेज चिंघाड़ के साथ बाइक थोड़ी असन्तुलित होती हुई रुक गई ।

करमू डिवाइडर से टकरा के गिर गया था पर गनीमत थी की कोई चोट नहीं आई थी । वह एक दम गुस्से से भर गया  ,उसके मुंह से बाइक सवार के लिए गालियां निकलने वाली ही थी की उसने देखा की बाइक सवार उसके पास ही आ रहा है ।
" अंकल ! सॉरी..... आपको कंही चोट तो नहीं लगी ?"बाइक सवार ने हैलमेट उतारते हुए उस से पूछा ।
"देख के क्यों नहीं चलता ...साले मरने का इरादा है क्या ? या किसी को मारने का ? कोई बड़ी गाडी होती तो तिया पांचा कर देती अभी तेरा ? " करमू ने गुस्से में कहा ।
"अंकल गलती हो गई ,दरसल ऑफिस  के लिए देर हो रही थी न ...इस लिए थोड़ा जल्दी में थे " एक  सुरीली आवाज को सुन करमू ने गर्दन घुमाई तो देखा की एक युवती खड़ी थी ।बहुत ही सुंदर ,उसका गुस्से का उबलता दूध एक दम मद्धिम पड़ गया ।
"अंकल !आप ठीक तो हैं न ?"लड़की ने फिर अपनी मिश्री जैसी मधुर आवाज में करमू से पूछा ।
" हाँ ठीक हूँ " करमू के मुंह से अनायास ही निकल गया पर तुरंत ही उसका मन खीज गया ।इतनी सुंदर लड़की उसे अंकल कह रही है ,बड़ा बुरा सा लगा उसे आखिर उसकी उम्र ही कितनी होगी मात्र 35 साल ही तो है और लड़की भी तो कम से कम 23-24 साल की तो होगी ही ।
"हाँ ठीक हूँ ..." करमू ने बुरा सा मुंह बना अपनी साईकिल खड़ी करते हुए कहा ।
" ओके अंकल ...एक बार फिर सॉरी" लड़की ने कहा और बाइक की तरफ मुड़ गई ,उसके पीछे पीछे लड़का भी चल दिया ।कुछ पल में  लड़के ने बाइक स्टार्ट की और नजरो से ओझल हो गया ।

करमू फिर एक बार साईकिल में पैडल मार रहा था किंतु इस बार वह खामोश नहीं था बल्कि उसके मस्तिष्क में तूफान उठ रहा था ।
उस लड़की की संबोधन 'अंकल.." बार बार गूंज रहा था ।
 "अंकल ....अंकल...." ओह! ऐसा लग रहा था जैसे चारो तरफ से यह आवाज उसे चिढ़ा रही हो ।
"अंकल...क्या मैं सच में इतना बूढ़ा हो गया हूँ ? करमू ने अपने आप से प्रश्न किया ।
"हाँ सच में मैं बूढ़ा ही लगने लगा हूँ ,बूढ़ा!अपनी जिम्मेदारियो को संभालते संभालते कब बूढ़ा दिखने लगा मुझे पता ही न चला"करमू के मस्तिष्क में जीवन की वो सारी घटनाये ऐसे प्रकाशित हो उठी जैसे अभी कल ही घटित हुईं हो ....वह अतीत में चला गया ।
कितना होशियार था वह पढ़ने में , जब दसवीं में आया था तो उसके पिता जी कहते की वह जरूर एक दिन पढ़ लिख के नाम रौशन करेगा उनका ।

दोस्तों में सबसे ज्यादा आकर्षक लगता था करमू इस कारण बहुत से लड़के उस से ईर्ष्या रखते तो मोहल्ले की कई लड़कियां उस के करीब आने की कोशिश में रहती ।एक लड़की से तो उसे सच्ची वाला प्यार भी हुआ था ,जिसे बाइक पर बैठा लॉन्ग ड्राइव पर जाने के दिवा स्वपन देखता। दिवा स्वप्न इस लिए की उसके पास उस समय साईकिल तक न थी तो बाइक बहुत बड़ी बात थी ,पर अरमान तो थे ही जो अभाव नहीं देखते।
फिर अचानक एक दिन उसकी जिंदगी बदल गई ,पिता की अकस्मात मृत्यु ने सब कुछ उजाड़ के रख दिया।परिवार की आर्थिक स्थति बेहद खराब हो गई ,माँ जो कभी घर से बाहर न निकली थी काम के लिए अचानक इतनी बड़ी क्षति को बर्दाश्त नहीं कर पाई और बीमार रहने लगी ।

घर में दो छोटी बहने थी करमू की जो कक्षा 5 और 7में पढ़ती थी उनकी भी पढाई छूट गई ,मजबूर करमू ने परिवार और अपना पेट भरने के लिए किताबे फैंक हाथो में झाड़ू पोछा उठा लिया ।किसी जानकार ने एक हॉस्पिटल में साफ़ सफाई के काम में रखवा दिया , अपने दसवीं की परीक्षाएं भी न दे पाया।

उसके बाद करमू की  जिंदगी कैसे बीतने लगी उसेस्वयं भी अहसह न हुआ,दिन भर कड़ी मेहनत और शाम को थोड़े और अधिक पैसे कमाने के लिए शादियों में गुब्बारे बेचना यही उसकी जिंदगी बन गई ।
अपनी दोनों बहनों की अच्छी परवरिश और फिर उनकी शादी करते करते कब वह 35 साल का 'अंकल' बन गया उसे पता भी न चला , परिवार के  होंठो पर  मुस्कुराहट लाते लाते कब उसके खुद के चेहरे की आभा चुपके से  50 साल के बूढ़े के चेहरे की झुर्रियो में परिवर्तित  हो गई यह देखने का मौका ही न मिला उसे ।

 बाइक पर गर्लफ्रेंड को बैठा के लॉन्ग ड्राइव पर जाने का अरमान न जाने कब पहले बस में थक्के खा के और अब साईकिल में पैडल मार मार के  नौकरी पर पहुँचने  तथा गुब्बारे बेचने में ख़त्म हो गए । लड़कपन में शुरू हुई रोटी कमाने की दौड़ आज तक ख़त्म न हुई ,आज भी चंद पैसो के लिए वही दिन रात की हाड तोड़ मेहनत इनके बीच भावनाये कँहा गुम हुई की खोजे नहीं मिली ।

मस्तिष्क में मजबूरियों का अतीत और वर्तमान की लाश लिय वह घर पहुंचा , कपड़े उतारने के अभी टाँगे ही थे की उसकी मां हाथ में पानी का गिलास लिए उससे कहा-
"करमू बेटे !तेरी छोटी वाली बहन कह रही थी की उसके घर का फ्रिज खराब हो गया है .....अगर तू नया फ्रिज दिला दे उसे तो बहुत अच्छा होगा "

करमू एक क्षण खामोश रहा ,फिर ठड़ी आह भरता हुआ बोला-
"ठीक है माँ ....अगले महीने और अधिक ओवरटाइम कर के दिलाने की कोशिश करूँगा "इतना कह वह यंत्रचालित मानव सा अपने विस्तर में  सोने चल दिया ।

बस यंही तक थी कहानी .....



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