Thursday 22 December 2016

भुल्लन बाबू-कहानी

  सफेद चमचमाती मेट्रो की खिड़कियों में लगे बड़े बड़े शीशों के भीतर से नीचे सड़क पर दौड़ते वाहनों को बड़े हैरत और जिज्ञासा से निहार रहे थे भुल्लन बाबू , ऐसा लग रहा था कि जैसे वे आसमान में उड़ते हुए नीचे झाँक रहे हों जंहा से सब छोटा छोटा दिख रहा हो।

"दादा रे! अइसन लागत बा कि कौनो बिदेसवा में आई गइली ...एतना भारी भारी बिल्डिंग बन गईल दिल्ली मा की दादा देखै त मुडिया दुखा जाए केहुके  " भुल्लन बाबु बाहर बड़ी बड़ी इमारतों को आस्चर्य से देखते हुए सोच में गुम थे ।

भुल्लन बाबू लगभग 20 साल बाद दिल्ली आ रहे थे , बीस साल पहले गाँव से दिल्ली कमाने आये थे तो पहाड़गंज की झुग्गियों में सर छुपाने की जगह मिली थी । एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में काम मिल गया था जिसमे हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते ।
हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते चलाते हाथो में गाँठ  पड़ गई थी ,कई बार सोचते की गाँव वापस भाग जाएँ पर भागते कैसे ।गाँव जाते ही उनका स्वागत लाठियों से जो होना था  ,आखिर टिकोरी लाल की मेहरारू का  खेत जाते हुए हाथ  जो पकड़ लिए थे जबरजस्ती ।
भौजी भौजी कर के बहुत मजाक करते  टिकोरीलाल की मेहरारू से और सोचते की भौजी पट गई है ।
टिकोरी की मेहरारू भी तो हँस हँस के बतियाती थी उनसे तब काहे न सोचें?।

एक दिन सांझ को जब  टिकोरी की मेहरारू खेत पर जा रही थी तब  भुल्लन बाबू मौका समझ के कूद पड़े उस पर , अभी हाथ पकडे ही थे की सामने  से टिकोरी अपने बैलों को हांकता हुआ दिखाई दिया ।
भौजी वैसे तो सरमा के मुस्कुरा रही थीं पर टिकोरी को देख के उनका रंग एक दम से बदल गया और टिकोरी की तरफ देख जोर से चिल्लाई-
" ये संतुओ क बाऊ जीsss.....तनिका इंहा आवा हो sss.. देखा तनी भुल्लनवा हमार हथवा पकड़ के जबरजस्ती करत बा"

 टिकोरीलाल ने भुल्लन को अपनी मेहरारू का हाथ पकड़े देखा .... भुल्लन ने टिकोरी के हाथ में सोंटा देखा , भुल्लन को तो जैसे काटो तो खून ही नहीं ।
टिकोरी की मेहरारू ने जब अपना हाथ झटक के छुटाया तो जैसे उसे होश आया ।
भुल्लन बाबू तुरंत सिर पर पैर रख के भागे पर तब तक टिकोरी पास आ गया था ,उसने हाथ में पकड़ा हुआ  सोंटा निशाना ले  फेंक के मार दिया । सोंटा सीधा बैठक पर लगा ,चीख निकल गई भुल्लन बाबू की किन्तु गिरते पड़ते घर की तरफ भाग लिए ।

पीछे पीछे टिकोरी लाल सैकड़ो गालियाँ निकालता हुआ भाग रहा था ।

भुल्लन बाबू घर से पीछे बने तबेले में  घुसे और वंहा  रखे भूसे की ढ़ेरी में जा छुपे । भूसे की ढ़ेरी ही एक मात्र ऐसा छुपने का स्थान था जंहा आज तक कोई न खोज पाया था उन्हें ।
उस दिन भी भूसे की ढ़ेरी में ही छुप के अपनी जान बचाई थी जब कई महीने तक स्कूल गोल किये थे ,अचानक पिता जी स्कूल पहुँच गए  हाल चाल लेने भुल्लन का तब मास्टर ने कहा कि उसका नाम तो 6 महीने पहले ही स्कूल से गोल कर दिया गया है ।
बाद में पिता जी ने छानबीन की तो पता चला की भुल्लन बाबू स्कूल गोल कर  गिल्ली डंडा खेलते और  हीरो बन स्कूल की लड़कियों आते जाते  नैन मटक्का करते।

उस दिन इसी भूसे में छुप के अपनी जान बचाई थी ,क़सम से वर्ना पिता जी ने हरे बांस की टहनी तोड़ लिए थे और हरे बासँ की टहनी तो जल्दी टूटती भी नहीं कितना ही जोर से मार लो ।पूरा दो दिन छुपे रहे इसी भूसे में तब जा के गुस्सा शांत हुआ था पिता जी का ।
आज अगर पता चल गया कि टिकोरी की मेहरारू को धर लिए थे तो न जाने क्या होगा , इधर पिता जी की बांस की हरी डंडी जो लगते ही खाल उतार लेती थी और उधर टिकोरी का बांस का सोंटा जो एक पड़ जाए तो बैल को भी जमीन पर लिटा दे ।

दिन भर चुप्पे वहीँ पड़े रहे ,बाहर हंगमा होता रहा ।सब लोग चप्पा चप्पा छान मारे पर भुल्लन बाबू नहीं मिले ।

रात हुई तो भूख सताने लगी ,भुल्लन बाबु चुपचाप भूसे की ढ़ेरी से निकले और भैंस के थन से जा लगे ।
पर यह क्या थन बिलकुल सूखा था एक बूंद भी दूध की नहीं निकल रहा था  । व्याकुल से भुल्लन बाबू किसी तरह तबेले की किंवाड़ फांद घर में दाखिल हुए तो पाया कि अम्मा अभी जग ही रही थी ।
धीरे आवाज में सैकड़ो गरियाने के बाद रोटी दी खाने को , भुल्लन बाबु ने चबर चबर दुइ मिनट में 5 रोटी डकार गएँ ।तृप्त होने के बाद अम्मा  से पता चला की टिकोरिलाल सुबह पंचायत बैठाएगा ,पंचायत का नाम सुन और बासँ की टहनी और सोंटे को याद कर भुल्लन बाबू के पसीने छूट गए ।

अम्मा जब सो गई तो चुपचाप संदूक खोला ,मील पर गन्ना बेच के 200 रूपये मिले थे जो  पोटली में बाँध नया बैल खरीदने के लिए रखे थे ।पोटली समेटी  और अम्मा की चांदी की पायल भी अपने पैजमे की जेब में डाला आधी रात को ही निकल लिए गाँव से ।

सुबह पांच बजे गोरखपुर के स्टेशन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन पकड़ लिए और पहुँच गए दिल्ली ।

जब तक जेब में पैसा था तब तक खूब चकल्लस से खाये पीए और खूब लम्पटियाई  किये पर जैसे ही पैसे खत्म हुए हालत खराब हो गई । तब याद आया की एक रिश्तेदार भी रहता है पहाड़गंज में ,किसी तरह उसका पता मालुम किया और जा धमके उसकी झुग्गी में ।बहुत हाथ पैर जोड़ने पर वह भुल्लन बाबू को अपने पास रखने को तैयार हुआ ।
पास ही एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में नौकरी भी लगवा दी रिस्तेदार ने भुल्लन बाबू की ।
हैण्ड प्रेस मशीन चलानी पड़ती थी ,हाथ में गाँठ  पड़ जाते थे  मशीन चलाते -चलाते ।कई बार सोचे की भाग जाएँ काम छोड़ छाड़ के पर कारखानेदार की मेहरारू  चम्पाकली बहुत मस्त लगती थी भुल्लन बाबू को इसलिए पिले पड़े रहते थे मशीन में कोल्हू के बैल की तरह।

कभी कभी चाय पानी पूछ लेती थी और हंस के बात भी कर लेती थी ,भुल्लन बाबू  कंही सुने थे की 'लड़की हंसी तो फंसी' इसलिए उनको पक्का एतबार हो गया था कि कारखानेदार की मेहरारू उन से फंस गई थी  ।अब बस भुल्लनबाबू 'शुभ महूर्त'का इंतेजार कर रहे थे की कब वे कारखानेदार की मेहरारू उनकी बांहों में झूले ।एक दिन मौका मिला, कारखानेदार बाहर गया हुआ था और चम्पाकली  अकेली थी ,उ चाय बना के लाइ और हँस के पकड़ा दी।भुल्लन बाबू ने आव देखा न ताव 'जय बजरंग बली .... तोड़ दुश्मन की नली' कह कूद पड़े अखाड़े में ,झट चम्पाकली को बांहों में समेट लिया ।

पर यह क्या सिग्नल ग्रीन की जगह रेड कैसे हो गया ? भुल्लन बाबू आगे कुछ और कर पाते की एक जोरदार- झन्नाटेदार लप्पड़ गाल पर पड़ा की  सारे रोमांटिक इमोशन ऐसे उड़ गएँ जैसे बिजली के तार पर में बैठे कौओं को कोई पत्थर मार के उड़ा दे ।  झट चंपाकली को छोड़ के भाग लिए ..... पीछे चम्पाकली सैकड़ो गालियाँ देती रही ।

आह!!यंहा भी फेल ....

फटाफट  झुग्गी में आ अपने कपडे समेटे और रिस्तेदार के घर में जो थोड़े बहुत पैसे और कीमती सामान था उसे उठा सीधा गोरखपुर की ट्रेन पकड़ी ।
अगर दिल्ली में रुकते तो कारखानेदार जान ही ले लेता उसकी । उसके बाद कभी पलट के न देखा दिल्ली की तरफ।

गांव में आ सब थोड़ा गुस्सा हुए पर बहुत दिन बीत गएँ थे इस लिए सबने माफ़ कर दिया भुल्लन बाबू को । पिता जी ने शादी करवा दी और फिर तीन बच्चे हो गएँ ।वैसे अब सुधर गएँ थे भुल्लन बाबू  पर लम्पटपन  अब भी बंद न हुआ था ,जब भी मौका मिलता गांव की औरतों को छूने की कोशिश कर ही लेते थे ।

आज बीस साल बाद उनका फिर से  दिल्ली आना हुआ ,भुल्लन बाबू के छोटे भाई की नौकरी दिल्ली मे लगने के कारण उसने यंही स्थाई निवास बना लिया था । भुल्लन बाबू को खेत के लिए ट्रैक्टर लेना था अतः उन्होंने छोटे भाई की सलाह पर दिल्ली से ट्रैक्टर खरीदने का मन बनाया  । छोटे भाई ने हिदायत दी थी की स्टेशन पर उतरने के बाद बस में न बैठे बल्कि मेट्रो पकड़ ले आखिर पैसा पास है और मेट्रो में सुरक्षित रहता है यात्री।

बगल में झोला दबाये भुल्लन बाबू मेट्रो में सवार हो लिए थे ,सीट नहीं मिली इसलिए बगल में पैसो का झोला दबाये मेट्रो कोच के बीच में गड़े पोल पर कमर लगाये यात्रा कर रहे थे ।

भुल्लन बाबू अभी आस्चर्य से बाहर देख ही रहे थे की एक भीनी सी खुश्बू उनके नथुनों से टकराई ।
खुशबु जानना थी ,भुल्लन बाबू आँख बंद कर खुशबु का मजा लेने लगे ।फिर आँख खोल कोच में देखने लगे , पहली बार कोच में नजर पड़ी उनकी अन्यथा वे तो बाहर के ही नज़ारे देखने में ही खोये हुए थे।

भुल्लन बाबू ने दिखा कोच खचाखच भरी हुई है , पर सब अपने में ही मस्त हैं। कोई फोनवा का तार कान में घुसेड़े हुये है तो कोई हाथ के दोनों अंगूठे से फोनवा में  खिचर पिचर कर के मुस्कुरा रहा है ।

भुल्लन बाबू उस जानना इत्र की खुश्बू में फिर लीन हो गएँ अचानक उनको ऐसा लगा की कोई उनके पीठ से पीठ सटा रहा है । उन्होंने पलट के देखा तो एक खूबसूरत लड़की उनकी पीठ से पीठ सटाये मुस्कुरा रही थी ।
भुल्लन बाबू को तो जैसे यकीं ही न हुआ की दिल्ली में कदम रखते ही इतनी खूसूरत लड़की यूँ उन से सट जायेगी । अब भुल्लन बाबू ने अपनी दुविधा दूर करने के लिए अपनी कमर को तनिक और पीछे किया और तिरछी आँख कर देखने लगे की लड़की की क्या हरकत होती है ।
लड़की बिना कोई आपत्ति किया यूँ ही खड़ी रही ,अब तो भुल्लन बाबू का दिल बल्लियां उछलने लगा, सोचने लगे की -

"ससुरा गाँव रह के एक्को मेहरारू और न ही लड़की उनको भाव दी  और इंहा देखो आते ही खूबसूरत मेम सट गईं उससे ....साला पिछड़े गाँव की पिछड़ी मेहरारू और लइकी लोग .. उँह ....आई दादा कितना निक और खूबसूरत मेम है "

अब कांख में दबाये पैसे के झोले को भूल कर लड़की की पीठ से पीठ रगड़ने लगे ,थोड़ी देर में उत्तेजना से एक दम पसीने पसीने हो गएँ ।अब सोचा की लड़की पट ही गई तो हाथ से छू के भी देख लिया जाए और एक हाथ पीछे कर लड़की के कमर तक ले आये।

तभी अचानक वज्रपात हुआ और सारी खड़ी फसल नष्ट ...... लड़की का तमाचा इतना जोरदार था कि पूरा कोच अपना मोबाइल छोड़ देखने लगा ।
फिर तो लड़की ने दे लप्पड़ दे लप्पड़ ...... दोनों कान सूजा दिए भुल्लन बाबू के और बीसियों गालियां और धमकियां देने लगी ।
भुल्लन बाबू झट से लड़की के कदमो में लोट गएँ और कान पकड़ के माफ़ी मांगने लगे ,लड़की का मन थोड़ा पसीजा और उसने भुल्लन बाबू को माफ़ कर दिया ।

"साला दिल्ली हमको कदम रखते हुए  फिर पिटवा दिया .... अब नहीं रुकना दिल्ली में न तो जाने  कितनी बार पिटेंगे .... भक्क साला ई मेट्रो पेट्रो और ई बिल्डिंग सिल्डिंग सब साला अभी गिर जाए ... हे!सीयू बाबा पूरी दिल्ली  कौनो गड्ढा में धंसी  जाये .... दादा रे" अपने सूजे हुए कानो को सहलाते हुए कोसा ।

भुल्लन बाबू ने भाई के पास जाने का इरादा कैंसिल कर फिर वापस गोरखपुर की टिकट कटवा ली ।

बस यंही तक थी कहानी .....


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