Friday 24 February 2017

बुद्ध और शिवलिंग

  वाल्मीकि रामायण में प्रसंग है -
"देवायतन  चैत्येषु  सान्नमक्ष्या : सदक्षिण:( वाल्मीकि रामायण कांड 2,सर्ग 3 ,श्लोक 18)

अर्थात- चैत्यों मे अन्नो और दक्षिणा की व्यवस्था करो।

येम्य: प्रणमसे पुत्र चैत्येश्वयतनेषु ( वाल्मीकि रामायण 2/25/15)

अर्थात-पुत्र तुम चैत्यों में जिन्हें प्रणाम करते हो

वाल्मीकि रामायण में 'चैत्य' शब्द का प्रयोग बहुत बार किया गया है , लंका में जब हनुमान जाते हैं तो वो चैत्यों पर उछल कूद करते हैं।

हम जानते हैं कि ' चैत्य' शब्द का प्रयोग बौद्ध विहारों/ मठो के लिए किया गया है ,यानि की बौद्ध मठो /विहारों को चैत्य कहा जाता था।
देखें मेदनिकोष, the students sanskrit-english dictionary  ,संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ ।


नाग भारत की एक प्राचीन जाति है , महाराष्ट्र में  नागपुर नाम का प्रसिद्ध स्थान आज भी नागवंशीय राज्य होने का सबूत है । नाग जाति जिसका सम्बन्ध बुद्ध से रहा ।बुद्ध के समय से ही नाग वंशीय (वो गण जिनका टोटम नाग था) बुद्ध के अनुयायी रहे, जब बुद्ध बौद्ध धम्म का प्रचार प्रसार करते थे तो नाग जाति के लोग उनकी सुरक्षा और सेवा में लगे रहते थे ।

चैत्यों की पूजा बौद्ध परम्परा रही है ,यह धारणा प्रचलित है कि चैत्य शब्द की उतपत्ति ' चिता 'शब्द से हुई है जो संभवत: चिता से सम्बंधित था ।
चिता के ऊपर बनाया गया घर या स्मारक चैत्य कहलाता था जिसका प्रयोग सामान्य रूप से धार्मिक और पवित्र स्मारकीय शिलाओं ,पवित्र स्थलों  के रूप में होता था । वस्तुतः बौद्ध धर्म के  पूजा स्थल को चैत्य कहा गया ।

बौद्ध परम्परा के अनुसार जब किसी श्रेष्ठ भिक्खु , आचार्य, या प्रसिद्ध उपासक का परिनिर्वाण हो तो नदी, तालाब के किनारे या उपलब्ध भूमि पर दाह संस्कार के बाद जो अस्थियां या राख शेष रह जाता उसे किसी पात्र में एकत्रित कर के मिटटी में दबा दिया जाता और उसके ऊपर स्मारक के रूप में स्तूप बना दिया जाता था ।इन स्तूपों के पास स्नान करने का कुंड बना दिया जाता था ताकि श्रद्धालु लोग स्नान कर अपनी  क्रियाएं कर सके, मोहनजोदड़ो (मुअनजोदाड़ो) का स्तूप के पास बना ग्रेट बाथ इसका उदहारण है।

आंबेडकर साहब की अस्थियो पर भी बौद्ध परम्परा के अनुसार स्तूप / स्मारक बनाया गया है जिसको चैत्य भूमि कहा जाता है।

जब भारत से बौद्ध धर्म को नष्ट किया गया तो जो बचे हुए बौद्ध थे उन्होंने भय से वैदिक धर्म तो अपना लिया किन्तु बौद्ध संस्कार ख़त्म न हुए ।
जैसा की आज हिन्दू द्वारा मुसलमान बन जाने के बाद भी उनमे कई हिन्दू संस्कर खत्म न हुए और वे मुस्लिम रह के भी हिन्दू रिति रिवाजो को मानते हैं।

स्तूप व् चैत्य पूजा करने वाले बौद्धों ने उसी का छोटा रूप(गुम्बद अथवा टीले की तरह) बनाकर अपने घरों में स्थापित कर लिया ,वैदिक भय के कारण ये स्तूप /चैत्य आकार में और छोटे छोटे चले गएँ कालांतर  में वैदिकों ने जब देखा की इससे कमाई की जा सकती है तो स्तूप को शिव लिंग का नाम दे दिया ।स्तूप के पास बने स्नान घर में स्नान करने की प्रक्रिया जल चढ़ाने में बदल गई ।

शिव बना है शव शब्द से ,शव अर्थात चिता.... ।

एकवर्तमान  उदहारण से आप और क्लियर कीजिये, इन दिनों साईं के मंदिर हर गली नुक्कड़ में मिल जायेंगे । माथे पर चंदन - त्रिपुंड धारण किये उन्हें अवतार घोषित किया जा चुका है , साई मंदिर में पुजारी वही ख़ास वर्ग का होता है जो आने वाला चढ़ावे में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी करता है ।
किन्तु जब साईं जिन्दा थे तो उन्हें मंदिर नहीं घुसने दिया जाता था ,वो मस्जिद में आश्रय लेते थे पर उनके मरने के बाद कमाई के लिए उन्ही के मंदिर बनवा खूब चढ़वा ऐठा जाता है ...।
क्रमशः



1 comment:

  1. जाकी धन-धरती लई, ताहि न राखहु संग।
    जौ राखनु ही परै, तौ करि राखु अपंग।

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