Wednesday 29 March 2017

तंत्रवाद और सिंधु सभ्यता-

 नवरात्रों का मूल है दुर्गा पूजा ,दुर्गा  पूजा का संबंध तंत्रवाद से रहा  है या यूँ कहें कि दुर्गा पूजा तंत्रवाद का ही हिस्सा है तो गलत नहीं होगा ।बंगाल में दुर्गा पूजा पर तांत्रिक क्रियाएं प्रसिद्ध हैं, शाक्त मत जिसकी आराध्य देवियां है वह मूलरूप से तंत्रवाद ही है।

दुर्गा का ही एक प्रसिद्ध रूप है शाकम्भरी देवी, शाकम्भरी का अर्थ है ' शाक सब्जी अथवा जड़ी बूटी पैदा करने वाली या शाक सब्जियों और जड़ी बूटियों का पोषण करने वाली' ।

स्वयं शाकम्भरी देवी भी मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य ( सर्ग-81 -93) में यह कहती हैं कि ' हे देवतो ,इसके बाद मैं जीवनपोषक साग सब्जियों के साथ सारे विश्व का पालन पोषण करुँगी ।साग सब्जी भारी वर्षा के दिनों में मेरे अपने शरीर से उत्पन्न होंगे तब मैं पृथ्वी पर शाकम्भरी के नाम से प्रसिद्ध होंगी '।

मार्कण्डेय पुराण में शाकम्भरी देवी का कथन कोई नई धारणा नहीं है बल्कि यह मान्यता अति प्राचीन  उस मान्यता को ही दोहराना था जिसमे पृथ्वी को माता कहा गया है । हम जानते हैं कि तंत्रवाद मातृसत्तामक (स्त्री पक्ष) की देन है जिसमे पुरुष लगभग नगण्य रहता है और स्त्री मुख्य केंद्र रहती है ।

वाम का अर्थ स्त्री भी होता है और वाममार्ग बिना तंत्रवाद के पूर्ण नहीं ।

पिछले लेख में मैंने चित्र सहित बताया था की हड़प्पा के उत्खनन से एक आयातकार मुद्रा  प्राप्त हुई है जिसपर एक नग्न स्त्री का चित्र है जो उल्टा बनाया गया है ।उसकी दोनों टांगे खुली हुई है और उसके गर्भ से एक पौधा निकल रहा है ।उस मुद्रा के ऊपर 6अक्षर बने हुए है जिसे अभी पढ़ा नहीं जा सका है किंतु संभवतः शाकम्भरी नाम पर कुछ प्रकाश डालते हैं।

तन धातु में स्त्रन प्रत्यय लगने से तंत्र शब्द बना है ,तन धातु का अर्थ है विस्तार करना या फैलाना ।
मूलतः  वंश का विस्तार या संतानों की वृद्धि   ही तंत्रवाद है।

देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय जी ने मोनियर विलियम्स का हवाला देके यह सिद्ध किया है कि हरिवंश पुराण और भागवत पुराण में तंत्र शब्द का प्रयोग ' संतानोत्पत्ति 'के अर्थ में किया गया है । यह बात आप  साधा।रण भाषा के संतान या तनय के अर्थ से भी जान सकते हैं।

तंत्रवाद के कुछ ठोस और भौतिक अवशेष सिंधु सभ्यता से प्राप्त हुए हैं ,जैसे शाकम्भरी की मुद्रा, स्त्री देवियों की मूर्तियां आदि। मार्शल तथा  प्राणनाथ जैसे वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि वास्तव के बहुत से आधार हैं कि सिंधु सभ्यता की अधिकांश कला और चित्रलिपि का तांत्रिक वस्तुओं के साथ गहरा संबंध है। सिंधु घाटी सभ्यता की संपत्ति पृथ्वी के उत्पादनों पर आधारित थी ,इसलिए स्वभाविक है कि कृषि चरण के विश्वास तंत्रवाद के रूप में विद्यमान रहे होंगे और धार्मिक क्रियाएं( जादू टोने द्वारा उत्पादकता में वृद्धि की मान्यता)  स्त्री द्वारा सम्पन्न होते रहे होंगे ।।हम इसका सबूत सिंधु मुद्रा में छपी उस चित्र में देखते हैं जंहा वृक्ष देवी ( शाकम्बरी) को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि दी जा रही है और इस क्रिया को करवाने के लिए सात पूजारने नियुक्त हैं।

स्त्री का रजस्वला होना उत्पादकता की निशानी है अतः तांत्रिक क्रियाओं में रजस्वला का विशेष महत्व है/ था। हड़प्पा में स्त्री मूर्तियां मिली है जो लाल रंग से पुती हुई थी, लाल रंग रक्त अर्थात रजस्वला या उत्पादकता का प्रतीक । आज भी कई भील जातियां अपने खेतों में बीज बोने से पहले कोने में सिंदूर से रंगा हुआ पत्थर रख देते हैं ताकि उत्पादन अच्छा हो।सिंदूर प्रतीकात्मक होता है स्त्री के मासिक धर्म का अतः स्त्री का मासिक धर्म तंत्रवाद में पवित्र माना गया है।

किन्तु, जब पितृसत्तामक(वैदिक) समाज में स्त्री के हाथ से धार्मिक कार्य का नियंत्रण निकल गया तो उसके प्रति विरोधी पक्ष भी तैयार कर लिया गया । रजस्वला स्त्री अपवित्र घोषित कर दी गई , तंत्रवाद को अपमान की नजर से देखा जाने लगा।



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