Tuesday 4 April 2017

सर्वशक्तिमान ईश्वर और जीव के चार वर्ग-

  " अरे केशव!...... सुनो तो जरा!" किसी ने पीछे से तेज  आवाज दी ।
केशव ने मुड़ के देखा तो ये मुन्ना बाबू थे, मुन्ना बाबू पड़ोस में ही रहते है केशव के । काफी पढ़े लिखे और किसी कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे, पड़ोस में रहने के कारण कभी कभी मिलना हो जाता है उनसे । कभी ज्यादा बात चीत नहीं हुई बस अभिवादन कर हाल चाल पूछने तक ही सीमित रही।

" नमस्ते मुन्ना जी ..... क्या हाल हैं?" केशव ने पूछा।
" नमस्ते....सब ठीक हैं...." मुन्ना बाबू ने जबाब दिया।
" कहिये कैसे याद किया? " केशव ने मुस्कुरा के पूछा।
" कुछ नहीं!सुना है आज कल तुमने ईश्वर /भगवान/ अल्लाह /गॉड सब को मानना छोड़ दिया है...एक दम 'नास्तिका वाले' हो गए हो?" मुन्नाबाबू ने व्यंगात्मक मुस्कुराहट लिए पूछा ।

केशव ने कुछ जबाब नहीं दिया मुन्नाबाबू की बात का केवल मुस्कुरा दिया।

" का.... माने !बिलकुल भी नहीं मानते ईश्वर को?" मुन्नाबाबू ने फिर जोर देके पूछा शायद उन्हें केशव का चुप रहना रास नहीं आया और वो कुछ ठोस जबाब चाहते थे ।

"आप मानते हैं ईश्वर को?"केशव ने उनसे पूछा।

"हाँ हाँ क्यों नहीं? उल्टा हम से ही पूछ रहे हो? हम तो मानते हैं  सर्वशक्तिमान ईश्वर को, उसी ने हमें- तुम्हें ये पेड़ पौधे और पूरा ब्रह्माण्ड बनाया है .... वो सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है " मुन्नाबाबू के जबाब में गर्व था । कुछ देर रुक वो फिर बोले-
" केशव भाई... तुम्हारी तरह नहीं की जिस सर्वशक्तिमान ने तुम्हे बनाया उसी को नकार दो .... हम प्रबल रूप से मानते हैं कि ईश्वर है "

" तो आपका ईश्वर सर्वशक्तिमान है ? " केशव ने सर्द लहजे में पूछा।
" बिलकुल ... वह सर्वशक्तिमान है ....सब कुछ कर सकता है जो इंसान के बस की नहीं और न ही तुम्हरे विज्ञान के बस की " मुन्नाबाबू का गर्व अब दुगना था।

"तो ठीक है ! क्या आपका सर्वशक्तिमान ईश्वर सामने वाले  10 मंजिला फ्लैट के टॉप से कूद के आत्महत्या कर सकता है ?" केशव ने फ़्लैट की तरफ इशारा करते हूए पूछा।

शायद ऐसे सवाल की आशा न थी मुन्नाबाबू को ,अतः वो आश्चर्य से केशव को देखने लगे ।
"यदि आप कहते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह बिल्डिंग से कूद भी सकता है ..... है कि नही?" केशव ने आगे कहा।

मुन्नाबाबू अब भी खामोश थे ,वह एक टक देके जा रहे थे । मुन्नाबाबू को खामोश देख केशव वंहा से चलने के लिए पैर उठाया ही था कि जैसे मुन्नाबाबू को होश आया हो ।उन्होंने केशव को रोकते हुए कहा - "अरे इतनी जल्दी क्या है जाने की ? चलो यह तो मानते हो की ग्रन्थो में ऐसी वैज्ञानिक बाते पहले के लोग लिख गएँ है जिनको आज के वैज्ञानिक मानते है"

" जैसे?" केशव ने वापस रुकते हुए कहा।
" जैसे .... ग्रन्थो में बहुत पहले ऋषियों ने लिख दिया था कि जीवन चतुष्टय है.... अंडज, जेरज , स्वदेज और उद्भिज्ज । यह तो वैज्ञानिक थ्योरी है जिनको प्राचीन ऋषि लिख गएँ और आज के वैज्ञानिक भी मानते हैं"  एक बार फिर मुस्कुराहट फैल गई थी मुन्नाबाबू के चेहरे पर लगता था कि अब चित ही समझो केशव को।

"हम्म.... अंडज यानि अंडों से पैदा होने वाला जीव, जेरज अर्थात पेट की झिल्ली में लिपटे हुए जन्मना, स्वेदज अर्थात पसीने से पैदा होने वाले और उदभिज्ज् जो धरती से पैदा हो जैसे पेड़ पौधे....,ठीक? " केशव ने पूछा।
"बिलकुल ठीक!..... अब बताओ वैज्ञानिक मान्यता है कि नहीं यह? " मुन्नाबाबू ने तपाक से पूछा।

" न! यंहा भी गड़बड़ है " केशव ने मुस्कुराते हुए कहा ।
" कैसे गड़बड़ है?" मुन्नाबाबू ने फिर आश्चर्य से पूछा।

" गड़बड़ यह है साहब की जिन जूं आदि प्राणियों को आपके ग्रन्थ स्वेदज यानि पसीने से पैदा बताते हैं वे दरसल गांदगी से पैदा होते हैं और सब अंडज है ... स्वेदज एक तरह का फालतू वर्ग है।ठीक वैसे ही जैसे राहु केतु ग्रह ।
उदभिज्ज वर्ग भी पूरी तरह सही नहीं है, समुन्द्री सेवाल ,काई जैसे पौधे धरती फोड़ के पैदा नहीं होते अतः सभी पेड़ पौधों को एक ही वर्ग में रखना अज्ञानता ही है।
इसके अलावा एक कोशीय जीव न तो अंडज हैं न जेरज और न किसी चतुष्टय वर्ग में ही आते हैं ..... आपके त्रिकाल दर्शी  ग्रंथकार 'वैज्ञानियो' को शायद इसका पता न था " केशव कहता जा रहा था और मुन्नाबाबू बिना कुछ बोले एक टक सुने जा रहे थे ।

" स्पंज नामक प्राणी के बारे में तो सुना होगा आपने? बताइये आपके ग्रन्थकार वैज्ञानिक अपने किस चतुष्टय वर्ग में रख गएँ है इसे ? केशव ने सवाल किया मुन्नाबाबू से ।

मुन्नाबाबू जैसे हड़बड़ा के नींद से जागे हों , वह लगभग अटकते हुए बोले-
"आं.... वो... बो..." इतना कह चुप हो गएँ।


केशव आगे बढ़ गया ..... इस बार मुन्नाबाबू ने आवाज नही लगाई ।


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