Sunday 23 July 2017

'ओम मणि पद्मे हुम्'

'ओम मणि पद्मे हुम्'

इस मन्त्र के विषय में यह मान्यता फैली है कि संस्कृत का यह मंत्र बौद्ध धर्म शाखा या तिब्बती बौद्ध में प्रचलित है ,यह मंत्र अवलोकितेष्वर यानि करुणा बोधिसत्व का द्योतक है।

 ओम का अर्थ ओम है , मणि का अर्थ गहना( माणिक या रौशनी -चमक) है , पद्मे का अर्थ कमल का फूल है जिसका अर्थ चेंतना किया और हुम् का सत/ आंनद अर्थ है।

यह भी आश्चर्य है कि संस्कृत के विद्वान तो इसे बुद्ध का मंत्र तो मानते ही है पर बौद्ध विद्वान भी इसे बुद्ध का मन्त्र मानते हैं।
जबकि सत्य है कि बुद्ध के समय संस्कृत थी ही नहीं।

संस्कृतवादियों का इस मंत्र को बुद्ध का मंत्र बताने का आशय यह रहता है कि बुद्ध को संस्कृत के बाद का सिद्ध किया जा सके ।

किन्तु यह मंत्र बुद्ध वचन नहीं है बल्कि यह मन्त्र  वज्रयान के तंत्रवाद का है।

ओम मणि पद्मे हुम् का अर्थ करते हुए देवीप्रसाद जी कहते है कि इसका सीधा अर्थ है 'ओम वह मणि जो पद्म पर विराजमान है'।

तंत्रवाद की योगसाधना को शत-चक्र भेद कहा जाता है । तांत्रिकों के अनुसार  इस का सैद्धांतिक आधार शरीर रचना के बारे में है ।
तंत्रवाद के अनुसार दो नाड़ियां हैं जो सुषुम्ना नाड़ी के दोनों ओर समान्तर चलती हैं, सुषुम्ना नाड़ी नितम्ब से लेकर मस्तिष्क तक जाती है और इसी लिए सामान्यतः इसी को रीड की हड्डी माना जाता है।

सुषुम्ना के अंदर एक और नाड़ी मानी जाती है जिसे वज्रख्या कहते हैं इसके बीच एक और नाड़ी है जिसे चित्रिणी कहते हैं। सीधे शब्दों में चित्रिणी सुषुम्ना नाड़ी का अंतरिम भाग है ।

तंत्रवाद में ऐसा माना जाता है कि सुषुम्ना नाड़ी के सात अलग अलग स्थानों पर सात पद्म (कमल) है ।आधुनिक तांत्रिक इसे स्नायुजाल कहते है किंतु प्राचीन तंत्रवाद के जानकार पद्म या कमल को योनि या भग का प्रतीक मानते है। प्राचीन तंत्रवाद में योनि या भग को पद्म से ही दर्शाते थे ।

प्राचीन तंत्रवाद के जानकार एल. डिलवालपोलियो ने कहा  "वज्र जिसका दूसरा नाम मणि है वह पुरुष के लिंग का रहस्यमय नाम है  ठीक उसी प्रकार जैसे योनि या भग का साहित्यिक नाम पद्म है"

प्रचीन कई सभ्यताओं में भी कमल को योनि का प्रतीकात्मक महत्व दिया गया था , इसलिए सुषुम्ना नाड़ी पर सात कमल नारीत्व के साथ स्थान हैं और तंत्रवाद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के अंदर हैं ।
विभिन्न तंत्रों के अनुसार सात पद्मो के निश्चित आकार के चित्र होते हैं , इन चित्रों में अधिकाँश पद्मो में त्रिकोण चित्र बने होते हैं । तंत्रवाद में त्रिकोण अनिवार्य भग या योनि का प्रतीक होते हैं ।

शत-चक्र भेद के इन पद्मो पर सात शक्तियों जैसे कुलकुण्डलिनी , वाणिनी, लाकिनी आदि उल्लेख होता है।ये सातों शक्तियां प्रत्येक पद्म पर विरजमान होती हैं।

तंत्र साधना में कुण्डलनी शक्ति(सुप्त पड़े नारीत्व) को नितम्बो के पास  सुष्मन्ना नाड़ी के अंतरिम केंद्र में जाग्रत किया जाता है और एक एक पद्म पर कर इसे मस्तिष्क तक लाया जाता है । सुषुम्ना के सबसे ऊपरी कमल को सहस्त्र- दल- पद्म कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है हजार पंखुड़ियों वाला कमल । कई विद्वान इसे हजार पिण्डको( अंडों) वाला ऊपरी मस्तिष्क कहते हैं जिसमे सभी पिंडक कुंडली के रूप में पड़े हैं। तांत्रिकों के अनुसार यह चेतना का सबसे उच्चतम निवास है।

तंत्रवाद के अनुसार पुरुषतत्व सहस्त्र-दल- पद्म में नारीत्व के साथ ही विरजमान है और कुण्डलनी शक्ति जब वँहा तक पहुँच जाती है तो पुरुषतत्व के साथ मिल के एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं। उनका कोई अलग अस्तित्व नहीं रहता ,सब कुछ नारीत्व में विलीन हो जाता है और चेतना का उच्चतम अवस्था अन्तरतल में जाग्रत हो चुकी होती है।

अब आपकेमस्तिष्क में शायद यह प्रश्न भी आ सकता है कि ओम तो संस्कृत का शब्द है तो बौद्ध धर्म में क्या कर रहा है?
पर यह सत्य नहीं है ओम बौद्ध शाखा के तंत्रवाद का शब्द है जो तांत्रिक क्रियाओं में प्रयोग होता था ।

ठीक ऐसे समझिये की तंत्रवाद के इस मन्त्र 'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' में नारी शक्ति को जाग्रत किया जा रहा है । अब कोई  ऐं ह्रीं क्लीं ' का संस्कृत अर्थ बताये ?

अतः यह कहना की 'ओम मणि पद्मे हुम्' बुद्ध वचन है तो सर्वदा गलत है। बल्कि यह वज्रयान का मंत्र है ।
चित्र-शत-चक्र भेद(सप्त कमल)

क्रमशः

Monday 17 July 2017

एक शहीद ये भी-



कल दिल्ली में चार सफाई कर्मियों की मौत की खबर पढ़ी, सेफ्टिक टैंक को साफ़ करने के दौरान जहरीली गैसों से उनका दम घुटने के कारण उनकी मौत हो गई।
यह पहली घटना नहीं बल्कि ऐसा कोई दिन ही होता होगा जब देश के किसी न किसी कोने में किसी न किसी सफाई कर्मचारी की मौत होती है ।

यदि कोई सैनिक बार्डर पर दुश्मनों से लड़ता हुआ मारा जाता है तो उसके प्रति पुरे देश की आम और ख़ास जनता में शोक और संवेदनाओं की लहर दौड़ पड़ती है , ऐसा होना भी चाहिए आखिर सैनिक हमारी ही सुरक्षा के लिए शहीद होते हैं।
सफाई कर्मचारी भी हमारी ही सुरक्षा में लगा एक सैनिक ही होता है जो हमारे लिए ही शहीद होता है ,किन्तु जब वह शहीद होता है तो देश में कोई शोक और संवेदनाओं की लहर नहीं होती। उसके शहादत पर कोई चर्चा नहीं होती , शायद ऐसी जातियता की मानसिकता के कारण होता है।

सफाई कर्मचारी ....जो नंग्गे बदन बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण के बदबूदार , जहरीली गैसों से भरे गटर में उतर जाता है बिना अपनी जान की परवाह किये ठीक वैसे ही जैसे एक सैनिक हमारी रक्षा के लिए बिना बुलेटप्रूफ जैकेट के उतर जाता है मैदान में ।
ये सफाईकर्मी जो उतर जाता है गटर साफ करने ताकि शहर में गंदगी न हो ... ताकि हमारे घरो -सड़को में गंदगी न हो और देश की जनता परेशान न हो बीमार न पड़े ....स्वस्थ रहे ।
बार्डर पर दुश्मन पडोसी मुल्क का सैनिक होता है जबकि यहाँ बीमारियां और जनता की परेशानियां जिससे एक सफाई कर्मचारी बखूबी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए लड़ता है ।

सोचिये जब भरी बारिश होती है , शहर के गली मोहल्ले की सड़के पानी और कूड़े करकट से बिलकुल जाम हो जाती है जिनमे पैदल चलना भी नामुमकिन हो जाता है , हमारे घरो तक में पानी भर जाता है जीवन दूभर हो जाता है । तब ऐसे में सफाई कर्मचारी नाम का सैनिक बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण के अपनी जान पर खेल, दिन रात जानलेवा गटर में घुस घुस के उसे साफ़ करता है ताकि हमारा जनजीवन सुगम हो सके ।

आउटलुक पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल लगभग 1000 सफाई कर्मचारी गटर साफ़ करते हुए शहीद हो जाते हैं । आउटलुक पत्रिका यह दावा करती है की उसके पास 2015 में मारे गए सफाई कर्मचारियों जिनकी मौत सैफ्टिक टैंक और गटर साफ करते हुई है उनका ब्यौरा है जिसकी संख्या 300 से अधिक है ,ये आंकड़े स्वयं पत्रिका ने एकत्रित किये है जबकि पूर्ण आंकड़े सरकार उपलब्द करवाने में असमर्थ है मृतको की संख्या सालाना 1000 से अधिक भी हो सकती है ।

आगे पत्रिका लिखती है की चैन्नई के तांबरम में रहने वाली नागम्मा अभी साफ़ सफाई का कार्य करती हैं । उनकी दो बेटियां है , उनके पति की मृत्यु 2007 में गटर साफ़ करते हुए थी जिसमें तीन अन्य सफाई कर्मचारियों की भी मौत हुई थी , सरकार ने कोई भी आर्थिक मदद नहीं की और न ही अन्य लोगो ने ।कहते कहते नागम्मा के आँखों में आंसू आ जाते हैं ।

हैदराबाद की दलित बस्ती में एक गन्दी सी झोपडी में बड़ी मुश्किल से गुजर बसर करने वाली श्रीलता बताती है उनके पति की मृत्यु सैफ्टिक टैंक साफ़ करते हुए मौत हुई उनकी 8 साल की बेटी ग्रीष्मा बताती है की वह बड़ी होके डॉक्टर बनना चाहती है क्यों की डॉक्टरों ने उसके पिता का इलाज ठीक से नहीं किया ... पापा गटर से बहार निकाले गए थे न इसलिए कोई डॉक्टर उन्हें छूने को तैयार न था ... मैं बड़ी होके अपने लोगो का ढंग से इलाज करुँगी " यह कह के ग्रीष्मा और उसकी माँ दोनों रोने लगे।

जिस समय आप मेरा लेख पढ़ रहे होंगे उस समय देश में हजारो सफाई सैनिक अपनी जान जोखिम में डाल के गटर और सीवर में उतर रहें होंगे ताकि आम जनता बीमारियो से बची रहे पर वह सैनिक खुद विषाणुओं और जहरीली गैसों से अपनी जान नहीं बचा पाता। मरने वाले सफाई सैनिको के परिवारवाले कितने दयनीय स्थिति में रहते हैं और जिन्दा रहने के लिए कितना संघर्ष करते हैं इसकी कल्पना करना मुश्किल है ।

केंद्र सरकार से लेके राज्य सरकार और जिला प्रशाशन की भयानक अवहेलना झेलते इन सफाई सैनिक परिवरो को भी देश के लोगो की सांत्वना और मदद की जरुरत है .... ठीक वैसे ही जैसे बार्डर पर मरने वाले सैनिक परिवारो को ।

एक बात और, जिस दिन गटर /टैंक  सफाई करते समय सिर्फ एक जाति विशेष के लोग न मर के अपने को उच्च जाति के कहलाने वाले भी मरने लगेंगे उसी दिन सफाई का काम मशीनों द्वारा होने लगेगा।
तब तक हम अभिशप्त हैं अपने भाइयों की मौत पर रोने के लिए ....


Sunday 16 July 2017

शिव-


शिव की की कल्पना मुख्यतः अवैदिक थी और मूल रूप से अस्ट्रिको/ द्रविड़ संस्कृति की देन  है ।

शिव का तमिल नाम सिवन है जिसका अर्थ लाल या रक्त वर्ण होता है । ऋग्वेद में रूद्र का जिक्र है जो बहुत कुछ शिव के समान ही हैं , जटाधारी , प्रकृति रूप से भयानक ।रूद्र का अर्थ भी लाल ही होता है ।
इसी प्रकार शम्भू शब्द की तुलना तमिल के 'सेम्बू' से की जाती है जिसका अर्थ होता है तांबा या लाल धातु।

रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि वैदिकों का रूद्र कुछ कुछ अवैदिको के शिव / सिवन जैसा ही था अतः थोड़ी कठिनाई के बाद रूद्र शिव में विलीन हो गए इसकी पुष्टि शिव के विषय में कही जाने वाली एक कथा से होती है जिसमे दक्ष प्रजापति के यज्ञ में शिव को स्थान नहीं दिया गया था ।शिव पार्वती का विवाह भी बेमेल सा है जिसमे पार्वती की माता शिव को दामाद के रूप में बिलकुल पसन्द नहीं करती हैं।
सम्भवतः बाद में वैदिकों और अवैदिको में विवाह संबंधों के कारण शिव को रूद्र के रूप में स्वीकृति मिली , अथवा सांस्कृतिक आदान प्रदान से शिव रूद्र बने। अतः ऑस्ट्रिको / द्रविड़ो के जो ताम्रवर्ण प्रतापी देवता थे वे वैदिकों के मारुतस्वामी रूद्र से मिल गएँ।

धीरे धीरे शिव का रूप अत्यंत विकसित हो गया जिसके एक छोर पर ऑस्ट्रिको/ द्रविड़ो के पारंपरिक शिव जो फक्कड़, दयालु, भांग पीने वाले , भयंकर रूपरंग लिए  जंगली जनजातियो के नायक ,सिंह की खाल ओढ़े ,  नृत्य करने वाले थे तो दूसरे छोर पर वैदिकों के रूद्र जो दार्शनिक रूप में दर्शाए जाने लगे।

एक बात और गौर करने लायक की सिंधु सभ्यता ताम्र सभ्यता थी ,लोहू का अर्थ तांबे के लाल रंग से ही है। सिंधु सभ्यता  में  जो ध्यानस्थ , सींगों का टोप पहने ,चारो तरफ जंगली पशुओँ का जमावड़ा आकृति मिली है वह ऑस्ट्रिको / द्रविड़ो के सिवन या सेम्बू से काफी हद तक मिलती है।

भारत में एक और जाति के लोगो का उल्लेख मिलता है वे हैं किरात , संस्कृत ग्रन्थो में इन्हें मलेच्छ कहा गया है। किरात जाति के लोग तिब्बत से लेके नेपाल,मणिपुर , असम , त्रिपुर, उत्तर प्रदेश ,बिहार तक फैले हुए हैं।
किरात लोग भारत में कब आये यह कहना तो मुश्किल है किंतु इनका अस्तित्व भारत में अति प्रचीन रहा है , आर्यो से भी पहले का ।
महभारत में जब अर्जुन का युद्ध शिव से हुआ था तो वे किरात के भेष में ही थे। चित्रगन्धा किरात राजकुमारी ही थी।
किरात जाति का मुख्य अधिपत्य हिमालय रीजन में था , शिव का भी निवास स्थान हिमालय ही बताया जाता रहा है।

गंगा के कई मैदानी इलाकों में 'कीरा'शब्द प्रसिद्ध है जिसका अर्थ 'साँप ' से लिया जाता है , कीरा शब्द किरात का अपभ्रंस है । शिव जी के गले में साँप की माला है  जो इस बात का द्योतक है कि सांप शिव के अति प्रिय रहे होंगे।
अर्थात किरात जाति कभी शिव की अनुयायी रही होगी या शिव उन्ही की जाति के कबीले के  कोई नायक रहे होंगे ।

बौद्ध ग्रन्थो में नागों को बुद्ध का अनुयाई बताया गया है, नाग जाति के लोग बुद्ध की सुरक्षा करते थे । बुद्ध के सबसे पहले अनुयाई वही लोग बने थे ,बुद्ध को भोजन कराने वाली सुजाता नाग जाति की कन्या थी। दिनकर जी जैसे इतिहासकार कहते है कि लिच्छवी और शाक्य(सक्क)  वंशीय जनजाति किरात भंडार से निकले थे । इसलिए बुद्ध के प्रति नागों में विशेष सम्मान था।

अब बुद्ध और शिव में क्या कुछ सम्बन्ध हो सकता है?