Wednesday 3 January 2018

अंग्रेजी सेना में अछूत जातियां-


पुणे के कोरेगांव विवाद के बाद यह प्रश्न भी उठाया जा रहा है कि महारो ( अछूतों) ने अंग्रेजी सेना में भर्ती होना क्यों स्वीकार किया ? वे अंग्रेजो की सहायता क्यों कर रहे थे ? पेशवाओं के खिलाफ अंग्रेजो के साथ क्यों थे जबकि पेशवा भारतीय ही थे । भारतीय होके भारतीय के खिलाफ क्यों लड़ रहे थे ?

हलाकि ऐसे प्रश्न करने वाले असल में सिर्फ अपनी धूर्तता का ही परिचय देते है , जबकि मुगल सल्तनत को कायम करने वाले हिंदू ही थे जो हिंदुओं के खिलाफ लड़ रहे थे । कौन नही जानता की अक़बर की सेना और सेनापति तथाकथित  उच्च जाति  हिन्दू ही थे जो दूसरे हिन्दू राजाओं से लड़ रहे थे।
अंग्रेजो के मददगार सिंधिया आदि  उच्च वर्ण के हिन्दू ही थे।

अंग्रेजो के आगमन से पहले अछूत जातियां अछूत रहने में ही संतुष्ट थीं, अछूतों के भाग्य में हिन्दू ईश्वर ने पैदा होने से पहले ही ' अस्पृश्य' होना लिख दिया था , उच्च वर्ण के हिन्दुओ ख़ास कर ब्राह्मणों ने उस पर धार्मिक मोहर लगा दी थी । धर्म का सहारा लेके ,धर्म के ठेकेदारों द्वारा अछूतों के साथ वैसा ही आचरण करा जाता था जैसा अमानवीय व्यवहार धर्म ग्रन्थो में दर्ज किया गया इसलिये उससे छुटकारा पाना असंभव ही था।

फिर अंग्रेज आएं, ईस्ट इंडिया कंपनी को उनकी फ़ौज के लिए सिपाहियों की आवश्यकता थी ,यह भाग्य कहें कि कुछ और जिन अछूतों को हिन्दू छू भर लेने से अपवित्र हो जाते थे उन्हें अंग्रेजो अपनी सेना में भर्ती किया । अछूत वीर योद्धा रहे थे प्राचीन काल में किन्तु उच्च जाति द्वारा उन्हें संसाधनहीन कर देने से पीढियां सुप्त अवस्था में आती गई, अंग्रेजी सेना में भर्ती होके वह पौरुष फिर से जागा जिसका नतीजा भीमा कोरेगांव युद्ध में देखने को मिला।

ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीय सैनिकों तथा उनके बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था थी , अछूतों को सेना में जो शिक्षा मिली उससे उनको बहुत लाभ हुआ , यह अभूतपूर्व था। इस शिक्षा से उन्हें सोचने , समझने की नई दृष्टि और दिशा मिली । अछूतों की चेतना जागी कि उनकी दुर्दशा उनके माथे की लकीर नही है बल्कि यह धूर्तो की करतूत है , उनका अस्पर्श्य होना किसीं ईश्वर  द्वारा उनके माथे की भाग्य रेखाएं नही बल्कि यह कलंक है। इससे उन्हें अपने पर बड़ी लज्जा आई, ऐसा अनुभव उन्हें पहले कभी नही हुआ था ,इसलिए उनसे छुटकारा पाने की तड़प उनमे जागी। तब उन्होंने समझा की जातिवाद एक सामाजिक समस्या है, इससे छुटकारा पाने का संघर्ष तब आरम्भ हुआ ।

अगर अंग्रेज न आते और अछूतों को अपनी सेना में भर्ती कर उन्हें शिक्षा से रूबरू न करवाते तो शायद आज भी अछूत गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू बाँध के चल रहे होते, आज जो धूर्त अछूतों के अंग्रेजी सेना में भर्ती होने का ताने दे रहे हैं शायद अछूतों की वही स्थिति से खुश थे।

कोरेगांव युद्ध महारो ने भारितयो के खिलाफ नहीं बल्कि जातिवादी भेडियो के खिलाफ लड़ा था जिनके राज में अछूतों को पीढ़ियों से मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से रोज नोच नोच के खाएं जा रहे थे।

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