Thursday 22 March 2018

बिहारी- कहानी

"ओ!! बिहारी!!....भो@# के साइड में चल ले" कार वाले ने कार का  हॉर्न मारने के साथ मुंह से गालियों का हॉर्न बजाया ।

 चिलचिलाती धूप की भीषण गर्मी में जिस सड़क पर पैदल चलना भी बड़ी मुश्किल हो रहा था दिल्ली वालों के लिए ,उस सड़क पर मुन्नालाल पसीने से भीगा और हांफता हुआ किसी तरह अपने रिक्शे को खींच रहा था। मुन्नालाल ट्रान्सपोर्ट से अपने  रिक्शे पर माल की भारी भारी तीन पेटियों को लोड किये हुए था जिसे जल्द ही सेठ के सदर बाजार वाले गोदाम पर पहुँचाना था , सेठ ने उसे इसी शर्त पर काम दिया था कि वह माल टैंपो से जल्दी पहुंचा देगा। अब  टैम्पो तो शाम चार बजे के बाद 'नो एंट्री', खुलने के उपरांत ही पहुंचा सकता था चुकी सेठ को माल जल्दी चाहिये था अतः उसने मुन्नालाल को यह जिम्मेदारी दी ।

"अबे ओ..... बिहारी ... मादर@# सुने ना...के!! परे नै कर ले या रिक्सा नै...." कार वाले की कर्कश आवाज़ फिर गूंजी ,इस बार आवाज़ कार के हॉर्न से भी तेज थी ।
"कर तो रहे हैं....साइड मिलेगी तब न करेंगे " मुन्नालाल खीजता हुआ बोला।
"तेरी भैण की $# ...जबान लड़ा रहा है ...बिहारी ...मादर@#." मुन्नालाल की खीज भरा उत्तर सुन कार वाला आपे से बहार हो गया ।

" भैण चो#.... दिल्ली नै अपने बाप की समझ के आ जाऊ थम , हरामजद्दो नै पूरी दिल्ली नास कर राखी है" माँ- बहन की सैकड़ो गालींयां देता हुआ वह कार से बाहर निकल आया। कार से उतरते ही  उसने मुन्नालाल पर गालियॉ के साथ थप्पड़ों ,लात- घूसों की बरसात कर दी।
मुन्ना लाल पहले से ही थका हुआ था ,यूँ अचानक हमला हो जायेगा यह उसने सोचा न थी । फिर दुबला पतला शरीर लिए वह अपना बचाव भी ठीक से नहीं कर पा रहा था ।
"छोड़ दीजिए .... छोड़ दीजिए.... हमारी गलती नहीं है...." कहता हुआ मुन्नालाल नीचे गिर गया । उसकी मैली कमीज फट के तार तार हो गई , थप्पड़ पड़ने के कारण मुंह से खून निकलने लगा था ।वह लगभग अचेत हो सड़क पर ही धम्म से बैठ गया । कर वाले का गुस्सा मुन्नालाल को मारने भर से ही शांत नहीं हुआ उसने एक जोरदार लात रिक्शे के अगले पहिये में मारी जिससे रिम टेढ़ा हो गया।

भीड़ बढ़ने लगी तो कार वाला कार में बैठा और तेजी से निकल गया।

मुन्नालाल बहुत देर तक वंही बैठा रहा । मुंह से खून निकलना बंद तो हो गया था पर लात -घूसों का असर अब तक था। सारा शरीर दर्द कर रहा था। मुन्ना लाल उठा और रिक्शे से पानी की बोतल निकाल पानी पिया और मुंह धोया। रिक्शे के पहिये को टेढ़ा देख उसको बहुत  गुस्सा आया, उसने गुस्से में कार वाले को बीसियों गाली दीं ।मुन्नालाल को अपनी मार पर इतना दुःख नहीं था जितना रिम के टेढ़े होने का था,आखिर माल समय पर पहुँचाना था वर्ना पैसे नहीं देगा सेठ।

किसी तरह रिम को कामचलाऊ करने के बाद मुन्नालाल दर्द भरे बदन से रिक्शा खींचते हुए  सदर बाजार सेठ के गोदाम पर पहुंचा । तब तक  शाम के छः बज गए थे , सेठ गुस्से में उसका इंतेजर कर रहा था ।

" साले बिहारी.... कँहा मर गया था ? तेरे चक्कर में ग्रहाक चला गया मेरा...कितना बड़ा नुकसान हो गया मेरा!!... कौन भरेगा ... भो@#$ के तेरा बाप!!" सेठ ने मुन्नालाल को देखते ही गुस्से में आग बबूला हो उठा और मारने दौड़ा।
मुन्नालाल ने हाथ जोड़ के सारी बात बतानी चाही पर सेठ कुछ कुछ सुनने को तैयार न था। मुन्नालाल ने माल गोदाम में उतार भाड़ा मांगने सेठ के पास पहुंचा तो सेठ ने उसे सौ रूपये पकड़ा दिए।
" सेठ जी बात तो तीन सौ रूपये की हुई थी" मुन्नालाल ने पूछा ।
" हुई थी पर वह टाइम पर आने के लिए था .... तेरे चक्कर में मेरा बहुत नुकसान हो गया ....लेना हो तो ले नहीं तो भाग यंहा से ... आज से साले बिहारियों पर भरोसा करना ही नहीं"सेठ ने दो टूक कहा ।

निराश मुन्नालाल ने सौ का नोट पकड़ा और चुपचाप वँहा से चल दिया। आखिर रिक्शा मालिक को  रिक्शे का किराया भी तो देना ही था ,अस्सी रूपये प्रति दिन। वह रिक्शा लेके धीरे धीरे रिक्शा मालिक के गैराज की तरफ चल दिया ।

"आज तो दिहाड़ी भी नहीं बनी, रिक्शे का रिम और टेढ़ा हो गया , अब रिक्शा मालिक इसके अलग पैसे काटेगा। आज क्या खाऊंगा ? होटल वाला उधार देगा की नही? "यही सब उसके मस्तिष्क में चल रहा था। मुन्नालाल बिहार के छपरा जिले का रहने वाला था , दसवीं तक किसी तरह पढाई की पर गरीबी ने आगे पढ़ने नहीं दिया । बिहार में रोजगार नहीं मिला तो दिल्ली आ गया था पिछले साल । अकेला कमाने वाला , बाप खेतिहर मजदूर छोटी दो बहनें जिनकीं शादी करनी थी । रिक्शा चला के पैसे घर भेजता हर महीने जिससे परिवार का पेट भरता था।

मुन्नालाल मन में  चिंता और उधेड़ -बुन लिए रिक्शा मालिक के गैराज पर पहुंचा । रिक्शा जमा कर किराया देके जैसे ही जाने लगा तभी रिक्शा मालिक की नजर रिक्शे के टेढ़े रिम पर पड़ी। उसने मुन्नालाल को आवाज लगाते हुए कहा
" इधर बे बिहारी..... साले फुद्दू बना के भाग रहा था ... रिम टेढ़ा कर लाया और बता भी नहीं रहा....निकाल इसके बीस रुपये "

मुन्नालाल ने चुप-चाप बिना कुछ कहे बचे हुए बीस रुपये निकाल के रिक्शा मालिक के हाथ में रख दिए और चलाने लगा।

" साले ये बिहारी चोर होते हैं..... ध्यान राखियों इसके रिक्शे का कंही कुछ गड़बड़ न कर के खड़ा कर जाए" रिक्शा मालिक ने पीछे से जोरदार आवाज में अपने लड़के को समझाते हुए कहा जिसे मुन्नालाल ने सुन लिया था।

"साले ये बिहारी चोर होते हैं....." ये शब्द मुन्नालाल के कानों में पिघले सीसे की तरह घुसते जा रहे थे। बिहारी शब्द एक गाली बन गई थी उसके लिए ..यही गाली तो दिन भर सुनता रहता है वह।
"बिहारी होना इतना बड़ा गुनाह है क्या?...मैं बिहार का हूँ तो इसमें मेरी क्या गलती....मैं चोर क्या चोर हूँ? अगर बिहार में रोजगार मिलता तो मैं यंहा इतनी दूर अपने परिवार को छोड़ के क्यों आता??"गुस्से और दुःख से उसने अपने आप से पूछा ,जिसका उसके पास कोई उत्तर नहीं था।

वह अभी कुछ दूर ही चला था कि एक दीवार पर लगे एक पोस्टर  पर पड़ी जिसपर लिखा था -
" बिहार दिवस की हार्दिक बधाई'

मुन्नालाल ने जब पोस्टर पढ़ते ही जैसे विक्षिप्त हो गया हो ..... उसने वह नोच लिया।

बस यंही तक थी कहानी.....

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